Shekhar : Ek Jeevani-1

Author:

Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2018
ISBN-13

9788126726776

ISBN-10 9788126726776
Binding

Paperback

Number of Pages 240 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 240
N.A.

Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' जन्म : 7 मार्च, 1911 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर में। शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देख-रेख में घर पर ही। 1929 में बी.एस-सी. करने के बाद एम.ए. में अंग्रेजी विषय रखा; पर क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी। 1930 से 1936 तक विभिन्न जेलों में कटे। 1936-37 में सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएँ कीं। दिल्ली लौटे और दिनमान साप्ताहिक, नवभारत टाइम्स, अंग्रेजी पत्र वाक् और एवरीमैंस जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1980 में वत्सलनिधि की स्थापना की। प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह : भग्नदूत, चिन्ता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इन्द्रधनु रौंदे हुये ये, अरी ओ करुणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में)। कहानी-संग्रह : विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल। उपन्यास : शेखर एक जीवनी—प्रथम भाग और द्वितीय भाग, नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी। यात्रा वृतान्त :अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली। निबंध-संग्रह : सबरंग, त्रिशंकु, आत्मनेपद, आधुनिक साहित्य, एक आधुनिक परिदृश्य, आलवाल। आलोचना : त्रिशंकु, आत्मनेपद, भवन्ती, अद्यतन। संस्मरण : स्मृति लेखा। डायरियाँ : भवन्ती, अन्तरा और शाश्वती। विचार गद्य : संवत्सर। नाटक : उत्तरप्रियदर्शी। सम्पादित ग्रन्थ : तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक (कविता-संग्रह) के साथ कई अन्य पुस्तकों का सम्पादन। सम्मान : 1964 में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और 1979 में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार। निधन : 4 अप्रैल, 1987
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