Sukha Bargad

Author:

Manzoor Ehtesham

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2020
ISBN-13

9788126717637

ISBN-10 9788126717637
Binding

Paperback

Number of Pages 228 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 220
सुपरिचित कथाकार मंजूर एहतेशाम का यह महत्त्वपूर्ण उपन्यास वर्तमान भारतीय मुस्लिम समाज के अन्तर्विरोधों की गम्भीर, प्रामाणिक और मूल्यवान पड़ताल का नतीजा है और यही कारण है कि इस उपन्यास को हिन्दी की कालजयी रचनाओं में गिना जाता है। सामाजिक विकास के जिन अत्यन्त संवेदनशील गतिरोधों पर क़लम उठाने और उन्हें छूने-भर का साहस भी बहुत कम लोग कर पाते हैं, उन्हें इस उपन्यास में न सिर्फ छुआ गया है, बल्कि सबसे बड़े ख़ुदा इंसान की ज़रूरतों, आशा-आकांक्षाओं और अस्तित्व के सन्दर्भ में उनकी गहरी छानबीन की गई है। धर्म, जातीयता, क्षेत्रीयता, भाषा और साम्प्रदायिकता के जो सवाल आज़ादी के बाद हमारे समाज में यथार्थ के विभिन्न चेहरों में उभरे हैं, उनकी असहनीय आँच इस समूची कथाकृति में मौजूद है। यही सारे सवाल आज भी हमारे आसपास एक ऐसे बरगद की झूलती जड़ें बनकर फैले हुए हैं, जिसके नीचे किसी भी कौम की तरक़्क़ी और ख़ुशहाली असम्भव है। लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण है यह जानना कि इस त्रासदी के पीछे किसका हाथ है और इसका हल क्या है? कहना न होगा कि इस प्रश्न का उत्तर देते हैं वे तमाम लोग जो इस समाज में शोषित, पीड़ित, अपमानित और लांछित हैं, लेकिन आज भी टूटे नहीं हैं।.

Manzoor Ehtesham

जन्म: 3 अप्रैल, 1948 को भोपाल में। शिक्षा: स्नातक। इंजीनियरिंग की अधूरी शिक्षा के बाद दवाएँ बेचीं। पिछले 25 वर्ष से $फर्नीचर और इंटीरियर डेकोर का अपना व्यवसाय। प्रकाशित कृतियाँ: पहली कहानी रमज़ान में मौत 1973 में और पहला उपन्यास कुछ दिन और 1976 में प्रकाशित। उपन्यास—सूखा बरगद, दास्तान-ए-लापता, पहर ढलते, बशारत मंजि़ल; कहानी-संग्रह—तसबीह, तमाशा तथा अन्य कहानियाँ; नाटक—एक था बादशाह (सह-लेखक सत्येन कुमार)। सम्मान: सूखा बरगद (उपन्यास) पर ‘श्रीकान्त वर्मा स्मृति सम्मान’ और भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता का पुरस्कार; दास्तान-ए-लापता पर ‘वीरसिंह देव पुरस्कार’ 2018 में इसका अनुवाद नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी प्रेस से छपा, जिसे ‘न्यूयॉर्क मैगज़ीन’ द्वारा अंग्रेजी में उपलब्ध अब तक का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास कहा गया। तसबीह (कथा-संग्रह) पर ‘वागीश्वरी पुरस्कार’ तथा 1995 में समग्र लेखन पर ‘पहल सम्मान’। 2003 में राष्ट्रीय सम्मान ‘पद्मश्री’ से अलंकृत। निराला सृजनपीठ (भोपाल) के अध्यक्ष भी रहे।.
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