Jatiyon Ka Loktantra : Jati Aur Chunav

Author :

Arvind Mohan

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2024
ISBN-13

9789360865764

ISBN-10 9360865761
Binding

Paperback

Number of Pages 256 Pages
Language (Hindi)
इस किताब‍ का उद्देश्य भारत के चुनावी लोकतंत्र और उसमें जाति की भूमिका को समझना है। यह एक कठिन काम है, क्योंकि एक सामाजिक श‍‍क्ति‍ के रूप में खुद जाति को समझना भी आसान नहीं है। आधुनिकता, शिक्षा और समझदारी के भूमंडलीय विस्तार के बावजूद भारतीय समाज में जाति जहाँ थी, अब भी वहीं है। बल्कि अब वह ज्यादा आत्मविश्वास के साथ सामने आ रही है। चुनावों में अब उसकी निर्णायक स्थिति को हर कोई स्वीकार कर चुका है; जातिवार जनगणना की बातें हो रही हैं; राजनीतिक पार्टियाँ, नेता और मतदाताओं के बीच जातियों के आधार पर नए ध्रुवीकरण हो रहे हैं, टूट भी रहे हैं, फिर बन भी रहे हैं। इसलिए यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि क्या जाति की इस राजनीतिक सक्रियता का कोई पैटर्न भी है, क्या कोई तरीका है यह जानने का कि जातियों की सतत गतिशील चुनावी गोलबन्दियाँ कैसे काम करती हैं। जाहिर है जिस देश में साढ़े चार हजार से ज्यादा समुदाय मौजूद हों, वहाँ इस सवाल को लेकर समाज में उतरना समुद्र में उतरने जैसा है। वरिष्ठ पत्रकार, अरविन्द मोहन ने इस किताब में यही किया है। पत्रकारिता और चुनाव-अध्ययन के लगभग चार दशक के अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने इस किताब में पिछले 76 सालों के बदलावों को समझने और कुछ निर्णायक प्रतीत होनेवाली प्रवृत्तियों को रेखांकित करने की कोशिश की है। यह जटिल और सुदीर्घ अध्ययन उन्होंने राज्यवार विश्लेषण के आधार पर किया है। इससे पता चलता है कि यूपी-बिहार ही नहीं, लगभग पूरे देश का चुनावी भूगोल जातियों के आधार पर बनता-बिगड़ता है।

Arvind Mohan

अरविन्द मोहन हिन्दी पत्रकारिता का एक परिचित नाम हैं जो जनसत्ता, हिन्दुस्तान, इंडिया टुडे (हिंदी) और अमर उजाला के विभिन्न पदों पर रहते हुए गम्भीर लेखन और अध्ययन आधारित ज्ञान के लिए जाने जाते हैं। आजकल वे एबीपी न्यूज समेत कई चैनलों पर राजनैतिक विश्लेषण करने के साथ अध्यापन और लेखन करते हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया समेत कई स्थानों पर अतिथि अध्यापक के तौर पर जुड़े हैं। पिछले दिनों वे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में अतिथि लेखक थे। अरविन्द मोहन ने पत्रकारिता और अध्यापन के साथ खूब लेखन और अनुवाद भी किए हैं। पिछले काफी समय से वे गांधी के चम्पारण सत्याग्रह से जुड़े तथ्यों का अध्ययन कर रहे थे जिस पर उनकी कई किताबें आई हैं। यह किताब भी उनके अध्ययन और समझ को अच्छी तरह बताती है जो पंजाब गए बिहारी मजदूरों के जीवन-संघर्ष पर आधारित है।
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