Hadse

Author:

Ramanika Gupta

Publisher:

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

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Publisher

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

Publication Year 2019
ISBN-13

9788183610025

ISBN-10 9788183610025
Binding

Paperback

Number of Pages 240 Pages
Language (Hindi)
Weight (grms) 267
इस आत्मकथा को स्त्राी के अपने चुनाव की कहानी भी कहा जा सकता है। पटियाला के बड़े मिलिटरी अफसर की जिद्दी और अपने मन का करनेवाली लड़की जो अपनी हरकतों से बार-बार बाप और उनके परिवार को असुविधाओं में डालती है, खुली मीटिंगों में उनके सामन्ती दुमुँहेपन पर प्रहार करती है, विभाजन की त्रासदी झेलती मुस्लिम महिलाओं की आवाज बनकर जवाब माँगती है और फिर अपने मन से क्षत्रिय (राजपूत) परिवार छोड़कर (गुप्ता) से शादी करके बिहार (झारखंड समेत) चली आती है। यहाँ आकर पति से विद्रोह करके मजदूरों-कामगारों के बीच उनके संघर्ष का जीवन चुनती है। इस आत्मकथा को सामन्तवाद और लोकतन्त्रा के खुले द्वन्द्व की तरह भी पढ़ा जा सकता है। इन्हीं तूफानी झंझावातों से गुजरकर आई है रमणिका गुप्ता। आर्य समाज, कांग्रेस, समाजवादी और कम्युनिस्ट होने की उनकी यह यात्रा भारतीय राजनीति के नाटकीय मोड़ों का इतिहास भी है और विकास भी।.

Ramanika Gupta

जन्म : 22 अप्रैल, 1930; सुनाम (पंजाब)। शिक्षा : एम.ए., बी.एड.। रमणिका गुप्ता बिहार/झारखंड की विधायक एवं विधान परिषद् की सदस्य रहीं। कई ग़ैर-सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से सम्बद्ध तथा सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक कार्यक्रमों में सहभागिता। आदिवासी, दलित, महिलाओं व वंचितों के लिए आजीवन कार्यरत। कई देशों की यात्राएँ। विभिन्न सम्मानों एवं पुरस्कारों से सम्मानित जिनमें ‘गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’, ‘आजीवन आदिवासी बंधु पुरस्कार’ भी शामिल हैं। प्रकाशित कृतियाँ : अब तक 16 कविता-संग्रह, दो उपन्यास, दो कहानी-संग्रह, दो कहानी-संग्रह सम्पादित, एक यात्रा-संस्मरण और दो आत्मकथा—‘आपहुदरी’ व ‘हादसे’। राष्ट्रीय आदिवासी दलित व नारी-विमर्श पर महत्त्पूर्ण पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके द्वारा सम्पादित दलित, स्त्री एवं आदिवासी विषयक पुस्तकें बहुचर्चित रही हैं। ‘निज घरे परदेसी’, ‘साम्प्रदायिकता के बदलते चेहरे’, ‘आदिवासी स्वर और नई शताब्दी’, ‘आदिवासी : विकास से विस्थापन’, ‘आदिवासी साहित्य यात्रा’, ‘आदिवासी शौर्य एवं विद्रोह (पूर्वोत्तर)’, ‘आदिवासी शौर्य एवं विद्रोह (झारखंड)’, ‘आदिवसी सृजन, मिथक एवं अन्य लोककथाएँ (झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात और अंडमान-निकोबार)’, ‘आदिवासी लेखन एक उभरती चेतना’, ‘आदिवासी अस्मिता के संकट’, ‘आदिवासी सहित्य और समाज’ एवं ‘विमुक्त-घुमन्तू आदिवासियों का मुक्ति-संघर्ष’ आदिवासी-विमर्श पर इनकी उल्लेखनीय लिखित, संकलित एवं सम्पादित पुस्तकें हैं। स्त्री-विमर्श पर भी इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। वे आजीवन ‘रमणिका फ़ाउंडेशन’ की अध्यक्ष रहीं। उन्‍होंने सन् 1985 से ‘युद्धरत आम आदमी’ (मासिक हिन्दी पत्रिका) का सम्पादन किया। निधन : 26 मार्च, 2019
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