Publisher |
RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD |
Publication Year |
2020 |
ISBN-13 |
9788183619547 |
ISBN-10 |
9788183619547 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
136 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
21 X 14 X 2.5 |
Weight (grms) |
130 |
घृणाजीवी राजनीति और घृणापोषित सामाजिकता के इस दौर में प्रेम! प्रेम के विरुद्ध गँड़ासे और तलवारें लिए खडी खाप पंचायतों, br>लव जेहाद कहकर प्रेम को कहीं भी कटघरे में खड़ा कर देने वाली राजनीति और प्रेमियों के पीछे दौड़ते एंटी-रोमियो स्क्वैड्स के इस दौर में प्रेम! कहने की जरूरत नहीं कि प्रेम और मनुष्य पर फबने वाली अन्य सकारात्मक गतिविधियों के लिए यह दौर अत्यन्त निराशाजनक है। लेकिन प्रेम फिर भी होता है। यह जीवन की उन साँसों में एक है जो कितनी भी ठोस शिलाओं के बीच से अपनी प्राणवायु खींच लेती हैं। वह है और रहेगा। पवन करण की प्रेम कविताओं का यह संग्रह इक्कीसवीं सदी की दूसरी दहाई के इन वर्षों की घनी होती घुटन के बीच एक ताजा साँस की तरह आया है। हिन्दी के मौजूदा कविता-बहुल समय में बहुत कम ही ऐसे चित्र मिलते हैं जिनसे कोई बिम्ब हमारे मन में सजीव साकार हो जाता हो। ये कविताएँ अपनी मांसलता और अपनी ऐन्द्रिय अभिव्यक्ति के चलते प्रेम तथा साहचर्य के ऐसे अनेक चित्र हमें देती हैं जो कल्पना और सृजनात्मकता से वंचित किए जा रहे हमारे समूह-मन के लिए br> राहत लेकर आते हैं। ये कविताएँ प्रेम के पक्ष में, प्रेम करने की प्रेरणा के तौर पर नहीं, प्रेम को जीने के लिए पढ़ी जानी चाहिए। इन्हें पढ़ते हुए आप अचानक अपने उस वर्तमान के प्रति क्षोभ से व्याकुल भी हो सकते हैं जिसकी हर कोशिश प्रेम के ख़िलाफ़ जा रही है।.
Pawan Karan
RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD