कबीर हैं कि मरते नहीं

Author:

Subhash Chandra Kushwaha

Publisher:

HIND YUGM

Rs249

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Publisher

HIND YUGM

Publication Year 2024
ISBN-13

9789392820892

ISBN-10 9392820895
Binding

Paperback

Number of Pages 204 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22 X 14 X 1.5
Weight (grms) 155

कबीर के विचारों की दो मौलिक स्थापनाएँ हैं। वैश्विक स्थापना यह कि ‘एक नूर ते सब जन उपज्या’ और भारतीय वर्णवादी विभाजन को चुनौती देती स्थापना कि-


एक बूँद एक मल मूतर एक चाम एक गुदा।


एक जाति थै सब उपजा कौन बाह्मन कौन सूदा।।


कबीर ने इन दोनों स्थापनाओं को अद्वैत, बौद्धों, सिद्धों, सूफियों और नाथों के प्रभाव से ग्रहण किया था। यह प्रभाव, बहुदेववाद, छुआछूत और तत्कालीन कर्मकांडी पाखंडों को नकारने की आवश्यकता से ग्रहण किया गया था। यह जातिवाद और मूर्तिपूजा के विरुद्ध था। कबीर के समय उत्तर भारत में सूफी दर्शन का व्यापक प्रभाव था जो प्यार और समर्पण को ही अपनी भक्ति मानते थे। वे खुदा को अपने अंदर देखते थे। उनकी साधना में खुदा वरल-वरा (Behind the behind) था तो संतों के लिए वह अपरंपार (Beyond the beyond) था। कबीर ने सूफियों से तत्व ज्ञान हासिल कर अपने निर्गुन राम को कहीं मासूका यानी बहुरिया माना है, कहीं जननी तो कहीं पिया। कबीर की विरहाग्नि, यानी संत का अपने इष्टदेव के चरम प्यार से बिछुड़ने का बिरह, सूफियों के इश्क यानी खुदा से चरम इश्क के दर्शन का ही रूप है। सूफी, अपनी साधना में इस विश्वास को तरजीह देते हैं कि धर्म बाह्याचार का नहीं, आंतरिक अनुभूति का मामला है। वे परमात्मा को प्रेम स्वरूप मानते हैं। सूफी साधक अल शिवाली के अनुसार सूफीवाद में, प्रेम प्रज्ज्वलित अग्नि के समान है जो परम प्रियतम की इच्छा के सिवा हृदय की समस्त चीजों को जलाकर खाक कर डालती है।


कबीर के विचारों पर सूफी दर्शन का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। तो हम कह सकते हैं कि कबीर का समाज-दर्शन और जीवन-दर्शन के बीच परस्पर अंतर्सबंध है। दोनों के केंद्र में मनुष्य का सरल, सहज गृहस्थ जीवन है। इस बिंदु पर मनुष्यता और कबीर दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन जाते हैं। कबीर के यहाँ ब्रह्म, आध्यात्मिक चेतना के रूप में स्थापित नहीं होते, सामाजिक जीवन-दर्शन के रूप में स्थापित होते हैं। इसलिए कबीर ने घोषित नास्तिकता के बजाय, कर्मकांड मुक्त धर्म और सर्वव्याप्त चैतन्य स्वरूप ब्रह्म की परिकल्पना की है।

Subhash Chandra Kushwaha

जन्म : 26 अप्रैल, 1961 को ग्राम जोगिया जनूबी पट्टी, फाजिलनगर, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश)में। शिक्षा : स्नातकोत्तर (विज्ञान) सांख्यिकी। प्रकाशित पुस्तकें : ‘आशा’, ‘कैद में है जि़न्दगी’, ‘गाँव हुए बेगाने अब’ (कविता); ‘हाकिम सराय का आखिरी आदमी’, ‘बूचड़खाना’, ‘होशियारी खटक रही है’, ‘लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियाँ’ (कहानी); ‘चौरी चौरा : विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन’ (इतिहास); ‘कथा में गाँव’, ‘जातिदंश की कहानियाँ’, ‘कथादेश’ साहित्यिक पत्रिका का किसान विशेषांक—‘किसान जीवन का यथार्थ : एक फोकस’ तथा ‘लोकरंग वार्षिकी’ का 1998 से निरन्तर सम्पादन। सम्मान : ‘सृजन सम्मान’, ‘प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान’, ‘आचार्य निरंजननाथ सम्मान’ आदि।
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