1084Ve Ki Maa

Author :

Santwana Nigam

Publisher:

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

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Publisher

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

Publication Year 1996
ISBN-13

9788171193516

ISBN-10 9788171193516
Binding

Hardcover

Number of Pages 142 Pages
Language (Hindi)
Weight (grms) 289
आजादी से समानता, न्याय और समृद्धि के सपने जुड़े थे ! लेकिन सातवें दशक में मोहभंग हुआ और सकी तीव्रतम अभिव्यक्ति नक्सलवादी आन्दोलन में हुई ! इस आन्दोलन ने मध्य वर्ग को झकझोर डाला ! अभिजात कुल में उत्पन्न व्रती जैसे मेधावी नौजवानों ने इसमें आहुति दी और मुर्दाघर में पड़ी लाश नंबर १०८४ बन गया ! उसकी माँ व्रती के जीवित रहते नहीं समझ पाई लेकिन जब समझ आया तब व्रती दुनिया में नहीं था ! १०८४वे की माँ महज एक विशिष्ठ कालखंड का दस्तावेज नहीं, विद्रोह की सनातन कथा भी है ! यह करुणा ही नहीं, क्रोध का भी जनक है और व्रती जैसे लाखों नौजवानों की प्रेरणा का स्रोत भी ! लीक से हटकर लेखन, वंचितों-शोषितों के लिए समाज में सम्मानजनक स्थान के लिए प्रतिबद्ध महाश्वेता देवी की यह सर्वाधिक प्रसिद्धि कृति है ! इस उपन्यास को कई भाषाओ में सराहना मिली और अब इस विहाल्कारी उपन्यास पर गोविंद निहलानी की फिल्म भी बन चुकी है !.

Santwana Nigam

जन्म: 1926, ढाका। पिता श्री मनीष घटक सुप्रसिद्ध लेखक थे। शिक्षा: प्रारम्भिक पढ़ाई शान्तिनिकेतन में, फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.। अर्से तक अंग्रेजी का अध्यापन। कृतियाँ अनेक भाषाओं में अनूदित। हिन्दी में अनूदित कृतियाँ: चोट्टि मुण्डा और उसका तीर, जंगल के दावेदार, अग्निगर्भ, अक्लांत कौरव, 1084वें की माँ, श्री श्रीगणेश महिमा, टेरोडैक्टिल, दौलति, ग्राम बांग्ला, शालगिरह की पुकार पर, भूख, झाँसी की रानी, आंधारमानिक, उन्तीसवीं धारा का आरोपी, मातृछवि, सच-झूठ, अमृत संचय, जली थी अग्निशिखा, भटकाव, नीलछवि, कवि वन्द्यघटी गाईं का जीवन और मृत्यु, बनिया-बहू, नटी (उपन्यास); पचास कहानियाँ, कृष्णद्वादशी, घहराती घटाएँ, ईंट के ऊपर ईंट, मूर्ति, (कहानी-संग्रह); भारत में बँधुआ मजदूर (विमर्श)। सम्मान: ‘जंगल के दावेदार’ पुस्तक पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’। ‘मैगसेसे अवार्ड’ तथा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ द्वारा सम्मानित। निधन: 28-07-2016 (कोलकाता)।.
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