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Publisher | RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD |
Publication Year | 2017 |
ISBN-13 | 9788183610698 |
ISBN-10 | 8183610692 |
Binding | Paperback |
Number of Pages | 121 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 21.5 X 14 X 0.73 |
‘‘कैसा आश्चर्य था कि वही चन्दन, जो कभी सड़क पर निकलती अर्थी की रामनामी सुनकर माँ से चिपट जाती थी, रात-भर भय से थरथराती रहती थी, आज यहाँ श्मशान के बीचो-बीच जा रही सड़क पर निःशंक चली जा रही थी। कहीं पर बुझी चिताओं के घेरे से उसकी भगवा धोती छू जाती, कभी बुझ रही चिता का दुर्गंधमय दुआ हवा के किसी झोंके के साथ नाक-मुँह में घुस जाता।’’ जटिल जीवन की परिस्थितियों ने थपेड़े मार-मारकर सुन्दरी चन्दन को पतिगृह से बाहर किया और भैरवी बनने को बाध्य कर दिया। जिस ललाट पर गुरु ने चिता-भस्मी टेक दी होक्या उस पर सिन्दूर का टीका फिर कभी लग सकता है ? शिवानी के इस रोमांचकारी उपन्यास में सिद्ध साधकों और विकराल रूपधारिणी भैरवियों की दुनिया में भटक कर चली आई भोली, निष्पाप चन्दन एक ऐसी मुक्त बन्दिनी बनजाती है, जो सांसारिक प्रेम-सम्बन्धों में लौटकर आने की उत्कट इच्छा के बावजूद अपनी अन्तरात्मा की बेड़ियाँ नहीं त्याग पाती और सोचती रह जाती है-क्या वह जाए ? पर कहाँ ?
Shivani
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