Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2019 |
ISBN-13 |
9789388933087 |
ISBN-10 |
9789388933087 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
104 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
130 |
जहाँ तक 'हिन्दू संस्कृति' का प्रश्न है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरोधाओं ने जिस रूप में इसकी व्याख्या की, पहले भी लिखा जा चुका है कि वह बहुत ही संकुचित और विकृत व्याख्या है, जो लोगों में इस संस्कृति के प्रति एक भ्रम पैदा करती है। जिन विद्वानों ने वास्तविकता पर आधारित तथ्यपरक व्याख्या की, उनको यह कहकर सिरे से खारिज कर दिया गया कि उन पर पश्चिम के विद्वानों का प्रभाव है और वे एकांगी दृष्टि से संस्कृति को देखते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि वेदों से प्रारम्भ कर भारतीय संस्कृति का समग्र रूप मनुष्य की समस्त जीवन-शैली के अच्छे-बुरे पक्ष को जाहिर करता है, जो समय के अनुसार बदलती रही है। हमारे देश में एक प्रचलन यह भी रहा है कि हम प्राचीन धार्मिक ग्रंथों पर तिलक-चंदन चढ़ाते हैं, उनकी पूजा करते हैं, पर उन्हें पढ़ते नहीं हैं। पढ़ते तो संस्कृति के नाम पर जो दुष्प्रचार किया जाता रहा है, वह सम्भव नहीं था.
Geetesh Sharma
जन्म: 1932 स्थान: लखीसराय, बिहार शिक्षा: दसवीं लेखक, पत्रकार, कल्चरल एक्टिविस्ट, अनीश्वरवादी, भौतिकवादी, चार्वाक, सांख्य दर्शन के अनुयायी। 24 पुस्तकों के रचयिता—12 अंग्रेजी, 12 हिंदी। भारत के अलावा एशिया, अमरीका, अफ्रीका एवं यूरोप के 29 देशों का भ्रमण। विभिन्न विश्वविद्यालयों में आयोजित राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों में भागीदारी। चर्चित पुस्तकें: धर्म के नाम पर, टैगोर: एक दूसरा पक्ष, हो-ची-मिन्ह और भारत (अंग्रेजी, हिंदी), वियतनाम: 1982-2017, नागार्जुन और कलकत्ता, भगतसिंह का रास्ता। 25 वर्षों तक कलकत्ता से लोकप्रिय साप्ताहिक 'जन संसार' का संपादन, प्रकाशन। बुद्ध की उक्ति—'हर चीज पर शंका करो, किसी का अंधानुकरण न करो, अपना पथ प्रदर्शक खुद बनो' का अनुकरण। मरणोपरांत देहदान की वसीयत।.
Geetesh Sharma
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