Bihari Ka Naya Mulyankan

Author :

Bachchan Singh

Publisher:

LOKBHARTI PRAKASHAN

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Publisher

LOKBHARTI PRAKASHAN

Publication Year 2014
ISBN-13

9788180318351

ISBN-10 8180318354
Binding

Hardcover

Number of Pages 183 Pages
Language (Hindi)
बिहारी' दरबार में रहते थे, पर उनको दरबारी नहीं कहा जा सकता। । उनमें चाटु की प्रवृत्ति नहीं थी; वे वेश-भूषा, रहन सहन, आन-बान आदि में किसी सामंत सरदार से कम न थे, उनका दृष्टिकोण पूर्णतः सामंतीय था, जो सतसई के काव्य तथा शैलीगत सतर्कता और सज्जा में अभिव्यक्त हो उठा है। उनके प्रेम, नारी सम्बन्धी भाव, गाँव-संबंधी विचार सभी पर सामन्त-कवि की छाप है, दरबारी कवि की नहीं। इस दृष्टिकोण को स्पष्ट करने पर ही सतसई का सम्यक् आकलन किया जा सकता था। इसके लिए भी सतसई को ही साक्ष्य माना गया है। इससे सुविधा भी हुई। तत्कालीन परिस्थिति और राजनीतिक स्थिति के नाम पर कहीं से इतिहास के दस बीस पृष्ठ फाड़कर चिपकाने नहीं पड़े। 'नयी- समीक्षा' का आग्रह भी कुछ ऐसा ही है।

Bachchan Singh

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