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Publisher | Vani Prakashan |
Publication Year | 2024 |
ISBN-13 | 9789362870582 |
ISBN-10 | 9362870584 |
Binding | Hardcover |
Number of Pages | 108 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 22 X 14 X 1.2 |
Weight (grms) | 150 |
कविता की जीवनी -अपने प्रदेश को, अपने आसपास को सुरक्षित रखने के बावजूद ए. अरविन्दाक्षन की कविताएँ लम्बी दूरी तय करके यात्रा करती प्रतीत होती हैं । उद्विग्नताओं को, चाहे वह जिस किसी की हो या जहाँ कहीं की हो उनके लिए वे मनुष्य की उद्विग्नताएँ हैं। उन्हें अनसुना नहीं किया जा सकता । अरविन्दाक्षन उन सारी बातों को शब्दित करना चाहते हैं जो जड़ संस्कृति के पर्याय हैं। मनुष्य विरोधी उन्मुखताओं के प्रति कवि अशान्त हो जाते हैं। यह अशान्ति उनकी बहुत सारी कविताओं में दर्ज है।‘भाषा का मौनख़तरे को सूचित करता है।कलिगुलाओं के डर सेभाषा यदि मौन साध रही हैतो उसका अर्थ हैभाषा मर रही है।’अरविन्दाक्षन की कविताओं में इतिहास अपनी उपस्थिति दर्ज करता रहता है। वर्तमानता का अतीत और अतीत की वर्तमानता के बीच की आवाजाही उनकी कविताओं में होती रहती है। अतः उनका‘इतिहास बोध सशक्त है ।विजित होनाहमेशा विजित होते रहनाजीत नहीं हैदरअसल वह हार है।हारते रहनाहमेशा हारते रहनाहारना नहींदरअसल वह जीत है।’इस कवि की कविताएँ उस तीर्थ की खोज करती रहती हैं जहाँ से वे मनुष्यता का जलकण लाना और वितरित करना चाहती हैं । यही उनकी समय के साथ की सहवर्तित है ।
A. Arvindakshan
Vani Prakashan