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Publisher | LOKBHARTI PRAKASHAN |
Publication Year | 2019 |
ISBN-13 | 9789388211505 |
ISBN-10 | 9388211502 |
Binding | Hardcover |
Number of Pages | 447 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 20 x 14 x 4 |
Weight (grms) | 560 |
म अपने आरम्भिक दिनों में वैदिक आर्य संस्कृति के प्रभाव से मुक्त रहा है । तब वह 'व्रात्य-सभ्यता' का केन्द्र हुआ करता था । वैसे आगे चलकर च्यवन और दधीचि जैसे ऋषियों का जन्म म में ही हुआ । अथर्ववेद की रचना भी यहीं हुई । म की धरती पर तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को तत्वज्ञान हुआ, चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर को कैवल्य ज्ञान मिला; और गौतम सिद्धार्थ क्रो बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई । म की धरती पर यदि शूरवीरों की तलवारों की झंकार गूँजी; तो पूरी दुनिया को प्रेम, सत्य और अहिंसा का संदेश देने वाले बुद्ध और महावीर की अमृतवाणी भी मुखरित हुई । महावीर ने राजगृह में पहला सामूहिक उपदेश दिया; और राजगृह के समीप पावापुरी में राजा संस्थिपाल के राजभवन में उनका देहान्त हुआ । कुल चौबीस जैन तीर्थकरों में से दो को छोड़कर अन्य सभी ने म की धरती पर ही निर्वाण प्राप्त किया । यहीं खगोलविद आर्यभट पैदा हुए और गदूयकवि बाणभट्ट भी । यहाँ चाणक्य और कामन्दक जैसे कूटनीति-दक्ष आचार्य हुए; तो जीवक और धनवन्तरि जैसे आयुर्वेदाचार्य भी । बिम्बिसार, अजातशत्रु, उदयिन,कालाशोक, महापदयनंन्द, चन्द्रगुप्त मौर्य,अशोक, पुष्यमित्र शुंभ, चन्द्रगुप्त प्रथम,समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य जैसे प्रतापी राजाओं की एक लम्बी श्रृंखला है,जिनकी जन्मदात्री होने पर किसी को भी गर्व हो सकता है
Kumar Nirmalendu
LOKBHARTI PRAKASHAN