Jahan-Jahan Kadam Pade

Author :

Chandrakanta

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2024
ISBN-13

9789360866792

ISBN-10 9360866792
Binding

Paperback

Number of Pages 112 Pages
Language (Hindi)
वर्षों से निलम्बित साहस को बटोरकर, अपने सुरक्षित दैनिक व्यापार के दुष्चक्र को तोड़‌कर जब हम यात्राओं पर निकलते हैं तो वह सिर्फ बाहर की यात्रा नहीं होती, भीतर की भी होती है; अपने भीतर, अपने आपको नया करने की यात्रा। असीम तक फैले इस विराट संसार से एकमेक होकर स्वयं को एक नवीन रूप में देखने-जानने की यात्रा। ‘जहाँ-जहाँ क़दम पड़े’ पुस्तक में संकलित, वरिष्ठ कथाकार चन्द्रकान्ता के यात्रा-वृत्त इसी अहसास के साथ की गई यात्राओं का विवरण देते हैं। यात्राएँ जिनका आरम्भ उत्सुकता से हुआ, और जो पूर्ण हुईं इस बोध के साथ कि ‘छोटी-छोटी यात्राएँ कभी-कभार हमारी चेतना में दबे अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर’ एक आभा के साथ हमारे सम्मुख रख देती हैं। अमेरिका, सिंगापुर, डिज्नीलैंड, सी वर्ल्ड, योसिमिटी नेशनल पार्क, पशुपतिनाथ धाम, जगन्नाथ धाम और उनकी अपनी वादी श्रीनगर, कश्मीर के अलावा इस पुस्तक में अलग-अलग संस्कृतियों के बीच सामंजस्य की कोशिश करते अमेरिकावासी भारतीयों की कथा भी हमारा ध्यान खींचती है। इन यात्राओं से प्राप्त अपने अनुभव के आधार पर चन्द्रकान्ता सही ही कहती हैं कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अपने देखे-समझे को जीवन्ततापूर्वक अंकित करना भी एक तरह से इतिहास ही लिखना है, एक ‘जेनुइन इतिहास’, जो उन्होंने इन यात्रा-संस्मरणों में सम्भव किया भी है।

Chandrakanta

जन्म: 3 सितम्बर, 1938 में (प्रोफेसर रामचन्द्र पंडित की पुत्री; पति डॉ. एम.एल. बिशिन) श्रीनगर (कश्मीर) शिक्षा: एम.ए., बी.एड.; बी.ए. (गर्ल्स कॉलेज) एवं हिन्दी प्रभाकर (ओरियंटल कॉलेज); बी.एड. (गांधी मेमोरियल कॉलेज), श्रीनगर, कश्मीर; बी.एड. में जम्मू-कश्मीर यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान और एम.ए. (हिन्दी), बिड़ला आर्ट्स कॉलेज, पिलानी, राजस्थान यूनिवर्सिटी; एम.ए. (हिन्दी), बिड़ला आर्ट्स कॉलेज में द्वितीय स्थान प्राप्त किया। प्रकाशित रचनाएँ: कहानी-संग्रह - सलाख़ों के पीछे: 1975; ग़लत लोगों के बीच: 1984; पोशनूल की वापसी: 1988; दहलीज़ पर न्याय: 1989; ओ सोनकिसरी!: 1991; कोठे पर कागा: 1993; सूरज उगने तक: 1994; काली बर्फ: 1996; प्रेम कहानियाँ: 1996; चर्चित कहानियाँ: 1997; कथा नगर: 2001; बदलते हालात में: 2002; आंचलिक कहानियाँ: 2004; अब्बू ने कहा था: 2005; तैंती बाई: 2006; कथा संग्रह (‘वितस्ता दा जहर’ शीर्षक से पंजाबी भाषा में अनूदित; अनुवादकः श्री हर्षकुमार हर्ष): 2007; रात में सागर 2008। उपन्यास - बाक़ी सब ख़ैरियत है (उड़िया भाषा में अनूदित; अनुवादक: प्रवासिनी तिवारी): 1983; ऐलान गली ज़िन्दा है (अंग्रेजी भाषा में अनूदित; अनुवादक: मनीषा चौधरी): 1984; अपने-अपने कोणार्क: 1995; कथा सतीसर: 2001; अन्तिम साक्ष्य और अर्थान्तर (उड़िया भाषा में अनूदित; अनुवादक: श्रीनिवास उद्गाता): 2006; यहाँ वितस्ता बहती है: 2008। अन्य कृतियाँ - यहीं कहीं आसपास: 1999 (कविता संग्रह); मेरे भोजपत्र: 2008 (संस्मरण एवं आलेख)। सम्मान: जम्मू-कश्मीर कल्याण अकादमी; हरियाणा साहित्य अकादमी; मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार; हिन्दी अकादमी, दिल्ली; व्यास सम्मान (के.के. बिड़ला फाउंडेशन दिल्ली), चन्द्रावती शुक्ल सम्मान; कल्पना चावला सम्मान; ऋचा लेखिका रत्न; वाग्मणि सम्मान; राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान; ऑल इंडिया कश्मीरी समाज द्वारा कम्यूनिटी आइकॉन एवार्ड, आदि।
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