अनुपम मिश्र एक अत्यन्त विनम्र, निरभिमानी व्यक्ति थे जिन्होंने पर्यावरण के क्षेत्र में साधारण और सामुदायिक विवेक और विधि का जैसा अवगाहन किया वैसा आधुनिक तकनालजी के दुश्चक्र में फँसे अन्य पर्यावरणविद् अकसर नज़रन्दाज़ करते रहे हैं। अनुपम जी लगभग जि़द कर अपनी इस धारणा पर डटे रहे कि साधारण लोग और समुदाय पढ़े-लिखों से ज़्यादा जानता-समझता है और आधुनिकता को अपनी सर्वज्ञता के दम्भ से मुक्त हो सकना चाहिए। उनसे बातचीत का यह संचयन इस अनूठे व्यक्ति के सोच-विचार की नयी परतें सहजता से खोलेगा ऐसा हमारा विश्वास है।"
Anupam Mishra
5 जून 1948 -19 दिसम्बर 2016) पिता: स्वर्गीय श्री भवानीप्रसाद मिश्र जन्म स्थान: वर्धा (महाराष्ट्र) शिक्षण योग्यता: एम. ए. दक्षता: फोटोग्राफी एवं लेखन वर्ष 1977 में पर्यावरण कक्ष के संचालक के रूप में गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान से जुड़े। पारम्परिक जल संरक्षण के लिए वर्ष 1992 में के.के. बिड़ला फेलोशिप। मुख्य कृतियाँ: छोटी-बड़ी 20 किताबें, जिनमें प्रमुख हैं—आज भी खरे हैं तालाब, राजस्थान की रजत बूँदें, साफ माथे का समाज, महासागर से मिलने की शिक्षा, अच्छे विचारों का अकाल। आज भी खरे हैं तालाब और राजस्थान की रजत बूँदे का समाज ने अच्छा स्वागत किया है। आज भी खरे हैं तालाब का उर्दू, बाङ्ला, मराठी, गुजराती, पंजाबी और अँग्रेज़ी तथा राजस्थान की रजत बूँदे के फ्रेंच, अँग्रेज़ी, बाङ्ला अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। इनके अलावा अकाल की परिस्थितियों में देश के 11 आकाशवाणी केन्द्रों ने इन पुस्तकों को पूरा का पूरा प्रसारित किया है। सम्मान: इन्दिरा गाँधी वृक्षमित्र पुरस्कार, 1986, चन्द्रशेखर आज़ाद राष्ट्रीय पुरस्कार, जमनालाल बजाज पुरस्कार, वैद सम्मान, दिल्ली हिन्दी अकादेमी सम्मान।
Anupam Mishra
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd