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Publisher | RAJPAL AND SONS |
Publication Year | 2012 |
ISBN-13 | 9788170283447 |
ISBN-10 | 8170283442 |
Binding | Hardcover |
Number of Pages | 96 Pages |
Language | (Hindi) |
Weight (grms) | 260 |
हरिवंशराय 'बच्चन' की अमर काव्य-रचना मधुशाला 1935 से लगातार प्रकाशित होती आ रही है। सूफियाना रंगत की 135 रुबाइयों से गूँथी गई इस कविता क हर रुबाई का अंत 'मधुशाला' शब्द से होता है। पिछले आठ दशकों से कई-कई पीढि़यों के लोग इस गाते-गुनगुनाते रहे हैं। यह एक ऐसी कविता है] जिसमें हमारे आसपास का जीवन-संगीत भरपूर आध्यात्मिक ऊँचाइयों से गूँजता प्रतीत होता है। मधुशाला का रसपान लाखों लोग अब तक कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे] लेकिन यह 'कविता का प्याला' कभी खाली होने वाला नहीं है, जैसा बच्चन जी ने स्वयं लिखा है- भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी न कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठक गण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला
Harivansh Rai Bachchan
RAJPAL AND SONS