Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2024 |
ISBN-13 |
9789360862824 |
ISBN-10 |
9360862827 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
144 Pages |
Language |
(Hindi) |
‘मसीहा की आँखें’ में दो किस्म की लघुकथाएँ हैं—पहली लघुकहानी जैसी तो दूसरी लघुव्यंग्य जैसी। दोनों ही किस्म की रचनाएँ अपने लघु कलेवर में गहरी चोट करने की क्षमता से लैस हैं। बलराम का यह संग्रह सही अर्थों में लघुकथा को बहुविध स्थापित तो करता ही है, उसके प्रतिमानों को सर्जनात्मक लेखन से पुष्ट भी कर देता है। अब इसमें कोई सन्देह नहीं रह गया है कि लघुकथा एक सशक्त विधा है। संवाद, संवेदना, भाषा, चरित्र, शिल्प और परिवेश के वे सारे तत्त्व इसके भी वैसे ही अंग हैं, जैसे उपन्यास और कहानी के होते हैं। बलराम ने इसके जरिये उन सारी दलीलों को खारिज कर दिया है कि लघुकथा का कोई भविष्य नहीं। वास्तविकता तो यह है कि आज जब व्यक्ति के पास अधिक समय नहीं है, इस भागमभाग भरी जिन्दगी में यही विधा सबसे कारगर और प्रभावी है। ‘डायरी’ लघुकथा विधा की विकास यात्रा तो कराती ही है, उसके सौन्दर्यशास्त्रीय पक्ष पर भी गहरा मंथन करती है। उल्लेखनीय लघुकथाओं के विवेचन के साथ बलराम ने उनके प्रतिमानों को स्थिर, विन्यास को सुदृढ़ और सर्जनात्मक विधा के रूप में उनकी अन्तर्क्रिया को समझने की एक नई व्यवस्था दी है, जो न सिर्फ लेखकों के लिए उपयोगी है, बल्कि उनके लिए भी विशेष रूप से लाभप्रद है, जो लघुकथा को सही अर्थों में समझना चाहते हैं।
Balram
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd