Availability: Available
Shipping-Time: Usually Ships 1-3 Days
0.0 / 5
Publisher | Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year | 2019 |
ISBN-13 | 9788119159789 |
ISBN-10 | 8119159780 |
Binding | Paperback |
Number of Pages | 219 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 22 X 14 X 2 |
मुड़-मुड़के देखता हूँ राजेन्द्र यादव का आत्मकथ्य है। इसमें उन्होंने अपने जीवन के ऐसे मोड़ों का ज़िक्र किया है जिनकी उनके लिए ख़ास अहमियत रही, और जो उनको लगे, कि किसी और के लिए भी रुचिकर होंगे। उनका मानना था कि आत्मकथा लिखना एक तरह से अपनी जीवन-यात्रा के लिए ‘जस्टीफ़िकेशन’ या वैधता की तलाश होती है, और उनमें ‘तथ्यों को काट-छाँटकर अनुकूल बनाने की कोशिशें छिपाए नहीं छिपतीं।’इसीलिए यह पुस्तक आत्मकथा की शैली में लिखी गई आत्मकथा नहीं, लेकिन उनके जीवन का पूरा ख़ाका इसमें ज़रूर स्पष्ट हो जाता है। साथ ही, इसमें वे मूल्य, मान्यताएँ और ख़ूबियाँ-कमज़ोरियाँ भी प्रकट हो जाती हैं, जिनका निर्वाह उन्होंने सदैव निडर होकर किया। यह उनका साहस ही है कि अपने अन्तर्विरोधों, अपनी कुंठाओं को भी उन्होंने छिपाया नहीं, और न ही अपने रिश्तों को। अलग-अलग शीर्षकों के तहत अलग-अलग समय लिखे आलेखों में फैले इस विस्तृत आत्मकथ्य में उन्होंने अपने लेखक और व्यक्ति को ऐसी निर्ममता से देखा है, जो उन्हीं के लिए संभव थी।पुस्तक में संकलित अर्चना वर्मा का ‘तोते की जान’ शीर्षक लम्बा लेख इस आत्म-वृत्त को भी पूरा करता है; और राजेन्द्र यादव को जानने की प्रक्रिया को भी जिनके बारे में साहित्य का हर पाठक जानना चाहता है।
Rajendra Yadav
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd