Majrooh Sultanpuri
मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म 1 अक्टूबर, 1919 को सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। वे हिन्दी फ़िल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार और प्रगतिशील आन्दोलन के सबसे बड़े शायरों में से एक थे। उन्हें 20वीं सदी के उर्दू साहित्य जगत के बेहतरीन शायरों में गिना जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं के ज़रिए देश, समाज और साहित्य को नई दिशा देने का काम किया। मजरूह सुल्तानपुरी ने पचास से ज़्यादा सालों तक हिन्दी फ़िल्मों के लिए गीत लिखे। आज़ादी मिलने से दो साल पहले वे एक मुशायरे में हिस्सा लेने बम्बई गए थे और तब उस समय के मशहूर फ़िल्म-निर्माता कारदार ने उन्हें अपनी नई फ़िल्म ‘शाहजहाँ’ के लिए गीत लिखने का अवसर दिया। उनका चुनाव एक प्रतियोगिता के द्वारा किया गया था। इस फ़िल्म के गीत प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगल ने गाए थे। ये गीत थे—ग़म दिए मुस्तक़िल और जब दिल ही टूट गया, जो आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। इनके संगीतकार नौशाद थे। मजरूह सुल्तानपुरी ने जिन फ़िल्मों के लिए गीत लिखे, उनमें से कुछ के नाम हैं—‘सी.आई.डी.’, ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘नौ-दो ग्यारह’, ‘तीसरी मंज़िल’, ‘पेइंग गेस्ट’, ‘काला पानी’, ‘तुम सा नहीं देखा’, ‘दिल देके देखो’, ‘दिल्ली का ठग’, ‘यादों की बारात’, ‘क़यामत से क़यामत तक’ आदि। 1965 में उन्हें ‘दोस्ती’ फ़िल्म के गीत ‘चाहूँगा मैं तुझे साँझ-सवेरे’ के लिए ‘फ़िल्मफेयर अवार्ड’ और 1994 में फ़िल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इससे पूर्व 1980 में उन्हें ग़ालिब एवार्ड और 1992 में ‘इक़बाल एवार्ड’ प्राप्त हुए थे। निधन: 24 मई, 2000 संपादक: विजय अकेला विजय अकेला एक गीतकार हैं। ‘कहो ना प्यार है’ और ‘कृश’ में इनके लिखे गीत काफ़ी सराहे गए हैं। विजय अकेला मुम्बई में रहते हैं और एफ़एम रेडियो जॉकी भी हैं। भारतवर्ष के अलावा इनकी आवाज़ खाड़ी-देशों में भी सुनने को मिलती है। ‘निगाहों के साये’ से पहले इन्होंने आनन्द बख़्शी के गीतों का संकलन ‘मैं शायर बदनाम’ भी तैयार किया था।.
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