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Publisher | Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year | 2022 |
ISBN-13 | 9789393603258 |
ISBN-10 | 9393603251 |
Binding | Paperback |
Edition | 1st |
Number of Pages | 184 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 22.5X14.5X2 |
Weight (grms) | 210 |
भारत के स्वाधीनता संघर्ष के साथ अनेक बड़े साहित्यकार उदित हुए किन्तु उन सबमें प्रेमचन्द अनूठे हैं। प्रेमचन्द का साहित्य भारत की करोड़ों जनता—विशेषतः किसानों की अपनी आवाज़ है : भारतीय किसान के समान ही सरल, सादा, साफ़ बेबाक, ज़मीन के नज़दीक और सहज बुद्धि से युक्त। इसीलिए रवीन्द्रनाथ ठाकुर और मोहम्मद इक़बाल जैसे महान साहित्यकारों का सम्मान करते हुए भी भारत की जनता ने प्रेमचन्द के साथ विशेष रूप से आत्मीयता का अनुभव किया—उनकी आवाज़ को अपनी आवाज़ समझा; उनके साहित्य में अपनी पीड़ा अपनी आशा-आकांक्षा, अपने अधिकारों और संघर्षों का प्रतिबिम्ब पाया। प्रेमचन्द के उपन्यासों और कहानियों में कबीर और तुलसीदास जैसे मध्ययुगीन सन्तों की वाणी चार-पाँच सौ वर्षों बाद एक नए अंदाज़ के साथ गोया फिर सुनाई पड़ी। राजनीति में इसी आवाज़ के प्रतीक गाँधी थे। —नामवर सिंह
Premchand
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