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Publisher | LOKBHARTI PRAKASHAN |
Publication Year | 2015 |
ISBN-13 | 9789352210169 |
ISBN-10 | 9352210166 |
Binding | Paperback |
Number of Pages | 448 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 22 X 14.5 X 2.5 |
मीराँ अपना एकतारा और खड़ताल हाथों में लेकर बिना किसी भूमिका के गा उठीं— सिसोदिया वंश के राणा यदि मुझसे रूठ गए हैं तो मेरा क्या कर लेंगे?... मुझे तो गोविन्द का गुण गाना है।... राणा जी रूठकर अपना देश बाख लेंगे।” दूसरे शब्दों में, देश में व्याप्त कुप्रथाओं एवं रूढ़ियों की रक्षा कर लेंगे।...किन्तु “यदि हरि रूठ जाएँगे तो मैं कुम्हला जाऊँगी। अर्थात् मेरी भक्ति व्यर्थ चली जाएगी।” “मैं लोक-लज्जा की मर्यादा को नहीं मानती।... मैं निर्भय होकर अपनी समझ का नगाड़ा बजाऊँगी!... श्याम नाम रूपी जहाज़ चलाऊँगी... इस तरह मैं इस भवसागर को पार कर जाऊँगी!... मीराँ अपने साँवले गिरधर जी की शरण में हैं तथा उनके चरणकमलों से लिपटी हुई हैं!...” इस प्रकार मीराँ का यह सात्त्विक विद्रोह ही तो था। अपनी मान्यताओं के प्रति उनकी दृढ़ता का प्रतीक। तत्कालीन झूठी लोक-मर्यादाओं की बेड़ियाँ जो शताब्दियों से स्त्री के पैरों में स्वार्थी पुरुष ने विभिन्न नियम संहिताएँ रचकर अपने हितलाभ के लिए पहना रखी थीं। मीराँ चुनौती दे रही थीं, उस सामन्ती युग में स्त्रियों के सम्मुख कड़ी कुप्रथाओं, कुपरम्पराओं का। वह अपूर्व धैर्य के साथ सामना कर रही थीं लौह कपाटों के पीछे स्त्री को धकेलने और उसे पत्थर की दीवारों की बन्दिनी बनाकर रखने, पति के अवसान के बाद जीते जी जलाकर सती कर देने, न मानने पर स्त्री का मानसिक और दैहिक शोषण करने की पाशविक प्रवृत्तियों का। मीराँ का सत्याग्रह अपने युग का अनूठा एकाकी आन्दोलन था जिसकी वही अवधारक थीं, वही जनक थीं और वही संचालक। मीराँ ने स्त्रियों के संघर्ष के लिए जो सिद्धान्त निर्मित किए उन पर सबसे पहले वे ही चलीं।
Sudhakar Adeeb
LOKBHARTI PRAKASHAN