Rani Roopmati Ki Aatmakatha  (Hb)

Author:

Priyadarshi Thakur 'Khayal'

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2020
ISBN-13

9789389577815

ISBN-10 9789389577815
Binding

Hardcover

Number of Pages 240 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 330
रानी रूपमती की आत्मकथा उपन्यास इतिहास और कल्पना का अच्छा मिश्रण है। वैसे तो यह उपन्यास रूपमती और बाज़ बहादुर की प्रेम-कथा है, लेकिन इस कथा में उस दौर की दुरभिसंधियाँ भी हैं। रानी रूपमती कौन थी, इस बारे में इतिहास मौन है, किन्तु उपन्यास में उसे राव यदुवीर सिंह, जिनके पुरखे कभी माँडवगढ़ के राजा थे, की बेटी के रूप में दर्शाया गया है । उपन्यास के अनुसार रानी रूपमती की माँ रुक्मिणी एक क्षत्राणी थीं, जिन्हें उनकी माँ के साथ मुस्लिम आक्रांताओं ने उठा लिया था। उनके चंगुल से वे निकल भागीं। एक वेश्यालय में शरण ली, जहाँ उनकी शादी राव यदुवीर से हुई। उसके बाद की कथा इतिहास की आड़़ी-तिरछी गलियों, सत्ता केगलियारों और युद्घ के पेंचदार प्रसंगों से होते हुए रानी रूपमती के ज़हर खाने तक जाती है। यह कथा उस समय की राजनीति के साथ-साथ तत्कालीन समाज का भी चित्रण करती है। धर्म और धर्म निरपेक्षता जैसे सवाल तो अपनी जगह हैं ही, उपन्यास की शैली भी रोचक है। यह स्वप्न-दर्शन और वर्णन की शैली में बुनी गई एक ऐसी कथा है जिसे खुद रानी रूपमती लेखक को स्वप्न में सुनाती है।.

Priyadarshi Thakur 'Khayal'

जन्म : 1946, मोतीहारी; मूल निवासी —सिंहवाड़ा, दरभंगा (बिहार)। पटना विश्वविद्यालय तथा दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में क्रमश: स्नातक तथा उत्तर-स्नातक। तीन वर्ष दिल्ली विश्वविद्यालय के भगत ङ्क्षसह कॉलेज में इतिहास का अध्यापन; 1970 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुने गए जिसके बाद 36 वर्षों तक राजस्थान सरकार एवं भारत सरकार में कार्यरत रहे तथा 2006 में भारत सरकार में भारी उद्योग व लोक उद्यम मंत्रालय के सचिव-पद से सेवानिवृत्त हुए। सन् 2006-8 के दौरान यूरोप के लुब्लियाना नगर में स्थित 'इंटरनेशनल सेंटर फॉर प्रोमोशन ऑफ एंटरप्राइजेज के महानिदेशक रहे। सरकारी मुलाजि़म रहते हुए भी खयाल आजीवन साहित्य साधना से जुड़े रहे। इनकी कविताओं, नज़्मों और गज़लों के सात संकलन प्रकाशित हैं : टूटा हुआ पुल, रात गये, धूप तितली फूल, यह ज़बान भी अपनी है, इंतखाब, पता ही नहीं चलता तथा यादों के गलियारे में। क्लासिकी चीनी कविता के अग्रणी हस्ताक्षर बाइ जूई की दो सौ कविताओं के इनके हिन्दी अनुवाद तुम! हाँ, बिलकुल तुम तथा बाँस की कहानियाँ नामक संकलनों में 1990 के दशक में प्रकाशित हुए और बहुचॢचत रहे। बाद के वर्षों में 'खयाल’ ने कई गद्य पुस्तकों का अनुवाद भी किया जिनमें तुर्की के नोबेल-विजेता ओरहान पामुक के उपन्यास स्नो का हिन्दी अनुवाद विशेष उल्लेखनीय है।
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