Sampurna Kahaniyan : Mridula Garg

Author :

Mridula Garg

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2022
ISBN-13

9789392757990

ISBN-10 9392757999
Binding

Hardcover

Number of Pages 720 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 21.5 X 14 X 4.5

मृदुला गर्ग ने लगभग आधी सदी से अपनी निरंतर ऊर्जस्वित रचनात्मकता के कारण, हिन्दी कथा-साहित्य में अनोखा मुक़ाम हासिल किया है। जीवन के किसी एक पहलू तक ही सीमित रहने के बजाय उन्होंने कथ्य और शिल्प दोनों में लगातार नवोन्मेष किए हैं। ये नवोन्मेष सायास साधी गई और प्रदर्शनप्रिय चमत्कारिकता के रूप में नहीं हैं। ये तो सहज विकास के तौर उनके विषयों के चुनाव और निर्वाह में रच-बस गए हैं। आरंभिक दौर में लिखी गई कितनी क़ैदें और 2014 में लिखी गई सितम के फ़नकार  को साथ-साथ पढ़ने से यह बात स्पष्ट हो जाती है।


स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर केन्द्रित कहानियाँ हों या अन्य सम्बन्धों और सरोकारों पर केन्द्रित; मृदुला गर्ग की कहानियों में मन के भीतर और बाहर का संवाद निरंतर लक्ष्य किया जा सकता है। उनकी बहुचर्चित बोल्डनेस केवल स्‍त्री-पुरुष सम्बन्‍ध की जटिलता के अनुसंधान तक सीमित नहीं, बल्कि “अपनी मौत के लिए वक़्त और जगह ख़ुद चुनने” तक व्याप्त है। उनकी कहानियों में जीवन का उत्सव है तो इसकी अनिवार्य परिणति का सहज स्वीकार भी। किसी एक पल में किए गए छोटे से काम के  अप्रत्याशित रूप से विडंबनापूर्ण परिणामों की पुनर्रचना है तो बदलते सामाजिक पर्यावरण की परिणतियों का अनुसंधान भी।


मृदुला गर्ग की कहानियों में भौगोलिक विस्तार, वर्गीय विविधता और तरह-तरह के पात्रों से मुखामुखम तो है ही कहानी के लिए चुने गए विषयों, पात्रों और स्थितियों और उन्हें कहने के ढंग में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण नवोन्मेष भी हैं। ऐसे नवोन्मेष सघन संवेदना, सूक्ष्म विडम्बना बोध और प्रखर विचारशीलता के ही कारण सम्भव हो पाते हैं। अनोखी बात यह कि इन विशेषताओं का अहसास पाठक के मन में लगभग नामालूम सहजता के साथ उतरता चला जाता है।


हिन्दी कथा-संसार को समृद्ध करने वाला यह अनोखापन ही मृदुला गर्ग के लेखन की विशिष्ट पहचान है।


—पुरुषोत्तम अग्रवाल  

Mridula Garg

मृदुला गर्ग के रचना-संसार में लगभग सभी गद्य विधाएँ सम्मिलित हैं। उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध, यात्रा-संस्मरण, कटाक्ष आदि। प्रकाशित पुस्तकें: उसके हिस्से की धूप, वंशज, चित्तकोबरा, अनित्य, मैं और मैं, कठगुलाब, मिलजुल मन और वसु का कुटुम (उपन्यास)। कुल प्रकाशित कहानियाँ—90, जिनको लेकर 2003 तक प्रकाशित 8 कहानी-संग्रहों की सम्पूर्ण कहानियों की पुस्तक संगति-विसंगति नाम से प्रकाशित। एक और अजनबी, जादू का कालीन, साम दाम दण्ड भेद, $कैद-दर-$कैद (नाटक)। रंग-ढंग, चुकते नहीं सवाल, कृति और कृतिकार, (निबन्ध-संग्रह)।मेरे साक्षात्कार (साक्षात्कार), कुछ अटके कुछ भटके (यात्रा-संस्मरण)। कर लेंगे सब हज़म, खेद नहीं है (व्यंग्य-संग्रह)। आपकी रचनाओं का अनुवाद अंग्रेज़ी, जर्मन, चेक, जापानी, उर्दू, मराठी,पंजाबी, राजस्थानी, तमिल और तेलुगू आदि भाषाओंं में हो चुका हैं। पुरस्कार/सम्मान: अनेक पुरस्कारों के साथ कठगुलाब को व्यास सम्मान, मिलजुल मन को साहित्य अकादेमी पुरस्कार, उसके हिस्से की धूप को मध्य प्रदेश का अखिल भारतीय वीरसिंह सम्मान, जादू का कालीन को मध्य प्रदेश का ही अखिल भारतीय सेठ गोविन्द दास सम्मान प्राप्त। कठगुलाब दिल्ली वि.वि. के बी.ए. पाठ्यक्रम तथा कई विश्वविद्यालयों में स्त्री-रचना/विमर्श पाठ्यक्रमों में शामिल है।.
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