Shabdon Ka Safar : Vol. 3

Author :

Ajit Wadnerkar

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2024
ISBN-13

9789394902657

ISBN-10 9394902651
Binding

Paperback

Number of Pages 384 Pages
Language (Hindi)
इंसान के पास शब्द ना होते तो इंसान का रिश्ता भी संसार के साथ वैसा ही होता जैसाकि जानवर का होता है। आचार्य दंडी को याद करें, ‘शब्दों की ज्योति न होती तो तीनों लोक अँधियारे होते’। शब्दों में ज्योति है क्योंकि उनका अपना एक जीवन है। कहाँ से शुरू होकर कहाँ तक जाता है, एक-एक शब्द का सफ़र! कैसे-कैसे अर्थ भरते जाते हैं शब्द में! हिन्दी की जीवन्तता का सबसे बड़ा कारण यह है कि इस भाषा ने संकीर्ण शुद्धतावाद को संस्कार कभी नहीं बनने दिया। न जाने कहाँ-कहाँ से आए शब्दों को हिन्दी ने अपनाया है। हिन्दी शब्दों के सफ़र को जानना हिन्दी भाषा के विकास के साथ-साथ हिन्दी समाज के मिज़ाज को भी जानना है। अजित वडनेरकर कई वर्षों से शब्दों के इस रोमांचक सफ़र में हम सबको शामिल करते रहे हैं। कमाल की सूझ-बूझ है उनकी और कमाल की मेहनत। कहने का अन्दाज़ निराला। ‘शब्दों का सफ़र’ कितने रोचक, प्रामाणिक और विश्वसनीय ढंग से एक-एक शब्द के विकास-क्रम और अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध को पाठक के सामने रखता है, यह पढ़कर ही जाना जा सकता है। सफ़र के इस तीसरे पड़ाव पर उन्हें बधाई और साथ ही शुक्रिया भी। —डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवालइंसान के पास शब्द ना होते तो इंसान का रिश्ता भी संसार के साथ वैसा ही होता जैसाकि जानवर का होता है। आचार्य दंडी को याद करें, ‘शब्दों की ज्योति न होती तो तीनों लोक अँधियारे होते’। शब्दों में ज्योति है क्योंकि उनका अपना एक जीवन है। कहाँ से शुरू होकर कहाँ तक जाता है, एक-एक शब्द का सफ़र! कैसे-कैसे अर्थ भरते जाते हैं शब्द में! हिन्दी की जीवन्तता का सबसे बड़ा कारण यह है कि इस भाषा ने संकीर्ण शुद्धतावाद को संस्कार कभी नहीं बनने दिया। न जाने कहाँ-कहाँ से आए शब्दों को हिन्दी ने अपनाया है। हिन्दी शब्दों के सफ़र को जानना हिन्दी भाषा के विकास के साथ-साथ हिन्दी समाज के मिज़ाज को भी जानना है। अजित वडनेरकर कई वर्षों से शब्दों के इस रोमांचक सफ़र में हम सबको शामिल करते रहे हैं। कमाल की सूझ-बूझ है उनकी और कमाल की मेहनत। कहने का अन्दाज़ निराला। ‘शब्दों का सफ़र’ कितने रोचक, प्रामाणिक और विश्वसनीय ढंग से एक-एक शब्द के विकास-क्रम और अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध को पाठक के सामने रखता है, यह पढ़कर ही जाना जा सकता है। सफ़र के इस तीसरे पड़ाव पर उन्हें बधाई और साथ ही शुक्रिया भी। —डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल

Ajit Wadnerkar

सीहोर मध्य प्रदेश में पैदाइश (1962)। राजगढ़ (ब्यावरा) के सरकारी कॉलेज से हिन्दी में एम.ए.। शानी के साहित्य पर लघुशोध। इसके एक हिस्से का नेशनल पब्लिशिंग हाउस से प्रकाशन। इकत्तीस वर्षों से पत्रकारिता। इक्कीस वर्ष प्रिंट मीडिया में, सात साल टीवी पत्रकारिता। ‘नवभारत टाइम्स’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘दैनिक दिव्य मराठी’, ‘आजतक’, ‘जी न्यूज़’, ‘स्टार न्यूज़’ आदि से सम्बद्ध रहे। वर्तमान में ‘अमर उजाला समूह’ में सम्पादक। 2013 से 2016 तक वाराणसी और 2016 से झाँसी संस्करण का प्रभार। विभिन्न भाषाओं से हिन्दी में आ मिले शब्दों के जन्मसूत्रों की तलाश और उनकी विवेचना की परियोजना है—‘शब्दों का सफ़र’। बोलचाल की हिन्दी को उसका बहुउपयोगी व्युत्पत्ति कोश मिल सके, यह प्रयास है। संस्कृतियों के निर्माण और वैश्विक विकास में हमारी विराट वाग्मिता का जो योगदान रहा है, उसे धर्म, समाज, राजनीति के वर्तमान वितंडात्मक सन्दर्भों से हटकर देखने की आवश्यकता के मद्देनज़र ही ‘शब्दों का सफ़र’ नाम से यह दस खंडों में समाप्त होनेवाला काम हाथ में लिया गया है। ई-मेल : wadnerkar.ajit@gmail.com
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