Agin Tiriya (Hindi)

Author:

Ravindra Bharti

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Rs169 Rs199 15% OFF

Availability: Available

Shipping-Time: Usually Ships 1-3 Days

    

Rating and Reviews

0.0 / 5

5
0%
0

4
0%
0

3
0%
0

2
0%
0

1
0%
0
Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2023
ISBN-13

9788119092253

ISBN-10 8119092252
Binding

Paperback

Edition 2nd
Number of Pages 143 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22X14X2
Weight (grms) 156

रवीन्द्र भारती की नाट्य-कृतियाँ हिन्दी रंगमंच में विगत बीस वर्षों से अपनी अनूठी अभिव्यक्ति एवं लोकप्रिय प्रस्तुतियों के लिए विख्यात हैं। ‘कम्पनी उस्ताद’, ‘फूकन का सुथन्ना’, ‘जनवासा’ जैसे नाटकों में आंचलिक सरलीकृत लोक-व्यवहार अपनी सघन और व्यापक अर्थवत्ता में जिस तरह सुलक्षित हुआ है, वह दुर्लभ है। उनकी यह नाट्य-कृति ‘अगिन तिरिया’ कुछ अलग ही भावजगत की है। उनके सभी नाटकों से भिन्न। भाषा, कथ्य, शिल्प—सभी स्तरों पर भिन्न। अद्भुत अजाना संसार न जाने कहाँ पैठकर रचा उन्होंने। नाटक के पात्र प्रचलित लोक जगत के नहीं लगते। कैसे-कैसे नाम रखे हैं पात्रों के—मात्या, सुआ, बेली, चेची आदि अनसुने नाम...प्रवृत्ति, प्रकृति, व्यवसाय, मनुष्येतर प्राणी, जीवन-नियोजन, अलंकार, दोगली घातक संस्कृति और उसके रक्षक तो लगते हैं पर सांसारिक नहीं लगते। ये पात्र नाट्यधर्मी हैं। शब्द से परे संवेदना के अन्तस्थल में निहित सांकेतिक बिम्ब हैं। भारती ने अपने पात्रों के ज़रिए ऐसी जीवनधारा का स्रोत बहाया है जिसमें एक नई वोल्गा से गंगा समाहित है। उसकी धारा में सृष्टि का इतिहास-बोध बह रहा है। सभ्यता के आरम्भिक काल से लेकर उत्तर-आधुनिक भविष्योन्मुख रचना है ‘अगिन तिरिया’ जिसमें अनवरत संघर्ष की नारी-गाथा संयोजित है।सनातन संघर्ष के विजय-उल्लास का ऐसा सुन्दर दृश्य भारती की यायावरी और हाशिये पर जी रहे आदि-वनवासी और जनजातीय समुदाय की लोकगाथा शैली और विन्यास से रोमांचित होकर सहज ही उपजा है, जहाँ परिकल्पना की ऐसी ऊँचाई है जो गाथा में आकांक्षा की विजय का बिम्ब सँवारती है।

Ravindra Bharti

No Review Found
More from Author