Badlon Ke Ghere

Author:

Krishana Sobati

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Rs371 Rs495 25% OFF

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2006
ISBN-13

9788126711840

ISBN-10 9788126711840
Binding

Hardcover

Number of Pages 206 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 381
बदलो के घेरे आधुनिक हिंदी कथा-जगत में अपने विशिष्ट लेखन के लिए जानी जानेवाली वरिष्ठ लेखिका कृष्णा सोबती की प्रारंभिक कहानियां इस पुस्तक में संकलित हैं ! शब्दों की आत्मा से साक्षात्कार करने वाली कृष्णा सोबती ने अपनी रचना-यात्रा के हर पड़ाव पर किसी-न-किसी सुखद विस्मय से हिंदी-जगत को रू-ब-रू कराया है ! ये कहानियां कथ्य और शिल्प, दोनों दृष्टियों से कृष्णा जी के रचनात्मक वैविध्य को रेखांकित करती हैं ! इसमें जीवन के विविध रंग और चेहरे अपनी जीवंत उपस्थिति से समकालीन समाज के सच को प्रकट करते हैं ! समय का सच इन कहानियों में इतनी व्यापकता के साथ अभिव्यक्त हुआ है कि आज के बदलते परिवेश में भी इनकी प्रसगिकता बनी हुई है ! अनुभव की तटस्थता और सामाजिक परिवर्तन के द्वन्द से उपजी ये कहानियां अपने समय और समाज को जिस आन्तरिकता और अंतरंगता से रेखांकित करती हैं, वह निश्चय ही दुर्लभ है !

Krishana Sobati

कृष्णा सोबती ने अपनी लम्बी साहित्यिक यात्रा में हर नई कृति के साथ अपनी क्षमताओं का अतिक्रमण किया है। ‘निकष’ में विशेष कृति के रूप में प्रकाशित ‘डार से बिछुड़ी’ से लेकर ‘मित्रो मरजानी’, ‘यारों के यार’, ‘तिन पहाड़’, ‘बादलों के घेरे’, ‘सूरजमुखी अँधेरे के’, ‘ज़िन्दगीनामा’, ‘ऐ लड़की’, ‘दिलो-दानिश’, ‘हम हशमत’, ‘समय सरगम’, ‘शब्दों के आलोक में’, ‘जैनी मेहरबान सिंह’, ‘सोबती-वैद संवाद’, और ‘लद्दाख: बुद्ध का कमंडल’ तक उनकी रचनात्मकता ने जो बौद्धिक उत्तेजना, आलोचनात्मक विमर्श, सामाजिक और नैतिक बहसें साहित्य-संसार में पैदा की हैं, उनकी अनुगूँज पाठकों में बराबर बनी रही है।
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