Chiriya Bahano Ka Bhai

Author:

Anand Harshul

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2017
ISBN-13

9788126730032

ISBN-10 9788126730032
Binding

Hardcover

Number of Pages 187 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 370
चिडिय़ा बहनों का भाई' के जिस कथा-संसार में आप दाखिल होने जा रहे हैं आनन्द हर्षुल का रचा हुआ एक 'अनिर्वचनीय' ऐन्द्रिय लोक है। यह कथानायक भुलवा का घर-संसार है। इस दुनिया की प्रकृति में पशु, वनस्पति और मनुष्य का अनिवार्य मेल है। एक से दूसरे के अस्तित्व में आवाजाही इस दुनिया में जि़न्दगी का सहज सामान्य दैनन्दिन तरीका है। नवजात बेटियाँ पैदा होते ही अपने कन्धों पर पंख उगाकर खिड़की से ऊड़ जाती हैं। आँखों में अथाह करुणा भरे, अपनी माँ और घर को अपने जन्म के अतिशय दुख से बचाने के लिए। उनके इकलौते भाई भुलवा की पकड़ी हुई मछलियाँ स्वयं उड़कर उसके घर जा पहुँचती हैं, उनकी ठठरी नदी में फिंककर फिर जि़न्दा मछलियों में तब्दील हो जाती हैं.. और भी वे सारी घटनाएँ और चरित्र जिनकी चर्चा यहाँ अनावश्यक है क्योंकि आगामी पृष्ठों में आप उनको स्वयं इस यथार्थ को रचते और उस यथार्थ से प्रसूत होते देखेंगे। यह भाषा के मिथकीय स्वभाव में जन्म लेने और व्यक्त होनेवाली दुनिया है। संवेदनाओं का समग्र संश्लिष्ट बोध इस दुनिया की जीवन-प्रणाली है, जैसी कि वह आदिम मनुष्य की रही होगी। आनन्द हर्षुल ने वैसी ही संश्लिष्ट सघन भाषा रचकर उस दुर्लभ अनिर्वचनीय समग्रता को वचनीय बनाया है और निस्सन्देह, यह स्वयं किसी चमत्कार से कम नहीं। आनन्द हर्षुल के हाथों में मिथकीय भाषा केवल दर्ज करने का उपकरण नहीं रह जाती। वह वस्तुत: आँख है, अनुभव को देखती और यथातथ्य भाव से उसकी उद्दामता को पकड़ती। यह तो अनुभव की उद्दामता है जो उसको यथातथ्य नहीं रहने देती। इस भाषा के हाथों में मिथक वह रूप ले लेता है जिसे कभी कोलरिज ने प्राथमिक कल्पना की तरह पहचाना था और उसे समस्त मानवीय बोध की जीवनी शक्ति और पुरोधा माना था जो सीमित आबद्ध चेतना में अनादि अनन्त 'अस्मि' की सृजनाकांक्षा की पुनरावृत्ति कही जा सकती है। यह संस्कृति की सुसंस्कारित प्रकृति की विकासगाथा है जो विकृति के प्रतिपक्ष की तरह स्थापित हो जाती है। प्रकृति को लौटा लाने का निर्विकल्प आह्वान अब एकमात्र बच रहा विकल्प है। 'चिडिय़ा बहनों का भाई' में आनन्द हर्षुल इसी आह्वान को साकार उपस्थित करते दिखाई देते हैं।

Anand Harshul

न्म : 23 जनवरी, 1959 को छत्तीसगढ़ के बगिया (रायगढ़) में हुआ। शिक्षा : कानून तथा पत्रकारिता में स्नातक। लेखन का प्रारम्भ कविता से। पहली कविता 1981 में और पहली कहानी 1984 में प्रकाशित हुई। इधर कई वर्षों से सिर्फ कथा लेखन। उनका पहला कहानी संग्रह बैठे हुए हाथी के भीतर लड़का 1997 में प्रकाशित हुआ। उसके बाद पृथ्वी को चन्द्रमा 2003 में। अधखाया फल (2009) उनकी कहानियों का तीसरा संग्रह है। रेगिस्तान में झील उनकी कहानियों का चौथा संग्रह है, जिसमें प्रारम्भ से 2001 तक की कहानियाँ संकलित हैं। सम्मान : बैठे हुए हाथी के भीतर लड़का के लिए, मध्यप्रदेश साहित्य परिषद का 'सुभद्रा कुमारी चौहान' पुरस्कार (1997) तथा पृथ्वी को चन्द्रमा के लिए 'विजय वर्मा अखिल भारतीय कथा सम्मान’ (2003) से सम्मानित हैं। उनकी कुछ कहानियों का मलयालम, उर्दू, पंजाबी तथा जर्मन भाषा में अनुवाद हुआ है।
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