SHRIKANT VERMA RACHANAWALI (VOL.1-8) (HB)

Author:

Shrikant Verma

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 1995
ISBN-13

9788126727292

ISBN-10 8126727292
Binding

Hardcover

Number of Pages 1000 Pages
Language (Hindi)
Weight (grms) 5910

श्रीकान्त वर्मा मुक्तिबोध की पीढ़ी के बाद के कवियों में अन्यतम बेचैन और उत्तप्त कवि इस माने में ज़्यादा हैं कि उन्होंने अपनी कविता के ज़रिए न केवल अपने समय का सीधा, तीक्ष्ण और अन्दर तक तिलमिला देनेवाला भयावह साक्षात्कार किया, बल्कि हर अमानवीय ताक़त के विरुद्ध एक निर्मम और नंगी भिड़ंत की। इसीलिए उनकी कविता में नाराज़गी, असहमति और विरोध का स्वर सबसे मुखर है। उनकी कविता उस दर्पण की तरह है, जहाँ कोई झूठ छिप नहीं सकता। उनकी कविता हर झूठ के विरुद्ध कहीं प्रतिशोध है तो कहीं सार्थक वक्तव्य। शायद इसीलिए वे सन् 60 के बाद की कविता के हिन्दी के पहले नाराज़ कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए। वे एक ओर मानवीय संवेदना के गहन ऐन्द्रिक प्रेम और क्षोभ के विरल कवि हैं तो दूसरी तरफ़ सामाजिक कर्म की कविता में नैतिक क्षोभ से उपजे सामाजिक हस्तक्षेप के दुर्लभ कवि हैं। वे उत्तर खोजने के बजाय प्रश्न खड़े करनेवाले कवि हैं। ‘भटका’ मेघ से शुरू हुई श्रीकान्त वर्मा की काव्य–यात्रा ‘माया दर्पण’, ‘दिनारंभ’ और ‘जलसाघर’ से गुज़रते हुए एक ऐसी कवि की दुनिया है जहाँ बीसवीं शताब्दी के मनुष्य की अपने समय से सीधी बहस है। कवि दूसरे से उलझने के बजाय स्वयं से प्रश्न करता है जहाँ उसके आत्माभियोग और आत्म–स्वीकार का स्वर सबसे मूल्यवान है। ‘मगध’ और ‘गरुड़ किसने देखा है’ एक ऐसे कवि की अथाह करुणा की पुकार है जो युग–संधि पर खड़ा अपने समय के मनुष्य, समाज, राजनीति, इतिहास और काल को बहुत निर्मम होकर बेचैनी के साथ देखते हुए मनुष्य और समाज की नियति को परिभाषित कर रहा है। इसीलिए ‘मगध’ समकालीन व्यवस्था का मर्सिया भर नहीं है बल्कि समय, समाज और व्यवस्था के विरुद्ध एक सीधा हस्तक्षेप है। इस खंड में पहली बार श्रीकान्त वर्मा की सम्पूर्ण प्रकाशित–अप्रकाशित, संकलित–असंकलित कविताओं का संचयन किया गया है जिसमें दर्ज है—एक कवि का सम्पूर्ण संसार जो अनेक संसारों में फैला हुआ है। इसके अतिरिक्त इस खंड में पुस्तकों की भूमिकाएँ, सम्पादकीय और अपने समकालीनों के साथ दो महत्त्वपूर्ण संवाद भी मौजूद हैं।

Shrikant Verma

जन्म: 18 सितम्बर, 1931, बिलासपुर (म.प्र.) में। 1956 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए.। 1955-56 में बिलासपुर से नई दिशा का सम्पादन। फिर भविष्य की खोज में दिल्ली आ गए। कुछ दिनों भारतीय श्रमिक में उपसम्पादक। 1958 से 62 तक दिल्ली की विशिष्ट पत्रिका कृति का नरेश मेहता के साथ सम्पादन। 1964 से साप्ताहिक दिनमान से सम्बद्ध हुए। सन् 77 में दिनमान से त्यागपत्र। साहित्य के अलावा राजनीति में सक्रिय हस्तक्षेप। साठ के दशक में डॉ. राममनोहर लोहिया के सम्पर्क में आए। उनके विचार और कर्म से गहरे स्तर पर प्रभावित। डॉ. लोहिया के असामयिक निधन और समाजवादी आन्दोलन के बिखराव के बाद सन् 69 में श्रीमती इंदिरा गांधी से परिचय और कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय भागीदारी। सन् 67 में म.प्र. से राज्यसभा के सदस्य। सन् 80 में कांग्रेस (ई.) के चुनाव अभियान का संचालन। सन् 85 में कांग्रेस पार्टी के प्रमुख महासचिव और प्रवक्ता। फरवरी 86 में अस्वस्थ। कैंसर के इलाज के लिए अमेरिका गए। 25 मई, 1986 को अमेरिका के स्लोन केटरिंग मेमोरियल अस्पताल में निधन। सम्मान: म.प्र. शासन द्वारा ‘उत्सव-73’ में विशिष्ट लेखन के लिए सम्मानित। जलसाघर के लिए तुलसी सम्मान। सन् 81 में म.प्र. शासन का प्रथम शिखर सम्मान। सन् 84 में कुमार आशान, यूनाइटेड नेशंस इंडियन कौंसिल आफ यूथ एवार्ड और म.प्र. के नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार से सम्मानित। सन् 86 में मरणोपरान्त साहित्य अकादमी पुरस्कार और सन् 85 में इंदिरा प्रियदर्शिनी सम्मान से सम्मानित।.
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