Ek Gond Gaon Me Jeevan

Author:

Veriar Elwin

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Rs401 Rs495 19% OFF

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2007
ISBN-13

9788126712960

ISBN-10 9788126712960
Binding

Hardcover

Number of Pages 135 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 322
यह पुस्तक भारत के मध्य भाग के इतिहास के एक विस्मृत अध्याय को और गोंड़ों के गौरवशाली अतीत को उजागर करने वाला एक दस्तावेज है। गढ़ा का गोंड राज्य बहुधा मुगल सम्राट अकबर की सेना से लोहा लेने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती के संदर्भ में ही याद किया जाता है और शेष इतिहास एक धुंधले आवरण से आवृत रहा है। यह आश्चर्य की बात है कि केवल दो सौ साल पहले समाप्त होने वाले इस विशाल देशी राज्य के बारे में अभी तक बहुत कम जानकारी रही है। इस कृति में लेखक ने फारसी, संस्कृत, मराठी, हिन्दी और अंग्रेजी स्रोतों के आधर पर गढ़ा राज्य का प्रामाणिक एवं क्रमबद्ध इतिहास प्रस्तुत किया है। वे सभी कड़ियां जोड़ दी गई हैं, जो अभी तक अज्ञात थीं। पुस्तक बताती है कि पन्द्रहवीं सदी के प्रारम्भ में विंध्या और सतपुड़ा और विन्ध्याचल के अंचल में गोंड राजाआंे ने जिस राज्य की स्थापना की वह क्रमशः गढ़ा, गढ़ा-कटंगा और गढ़ा-मण्डला के नाम से विख्यात हुआ। गढ़ा का गोंड राज्य यद्यपि सोलहवीं सदी में मुगलों के अधीन हो गया, तथापि न्यूनाधिक विस्तार के साथ यह अठारहवीं सदी तक मौजूद रहा। सोलहवीं सदी में अपने चरमोत्कर्ष काल में यह राज्य उत्तर में पन्ना से दक्षिण में भंडारा तक और पश्चिम में भोपाल से लेकर पूर्व में अमरकंटक के आगे लाफागढ़ तक फैला हुआ था और 1784 में मराठों के हाथों समाप्त होने के समय भी यह वर्तमान मंडला, डिण्डोरी, जबलपुर, कटनी और नरसिंहपुर जिलों और कुछ अन्य क्षेत्रें में फैला था। यह विस्तृत राज्य पौने तीन सौ वर्षों तक लगातार अस्तित्व में रहा यह स्वयं में एक उल्लेखनीय बात है। राजनीतिक विवरण के साथ ही यह कृति उस काल की सांस्कृतिक गतिविधियों का परिचय देते हुए बताती है कि आम धारणा के विपरीत गोंड शासक साहित्य, कला और लोक कल्याण के प्रति भी जागरूक थे।

Veriar Elwin

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