प्रवासी भारतीय होना भारतीय समाज की महत्वाकांक्षा भी है, सपना भी है, केरियर भी है और सब कुछ मिल जाने के बाद नॉस्टेल्जिया का ड्रामा भी । लेकिन कभी-कभी वह अपने आप को, अपने परिवेश को, अपने देश और समाज को देखने की एक नयी दृष्टि का मिल जाना भी होता है । अपनी ज़न्मभूमि से दूर किसी परायी धरती पर खड़े होकर वे जब अपने आप को और अपने देश को देखते हैं तो वह देखना बिलकुल अलग होता है । भारतभूमि यर पैदा हुए किसी व्यक्ति के लिए यह घटना और भी ज्यादा मानीखेज इसलिए हो जाती है कि हम अपनी सामाजिक परम्पराओं, रूढियों और इतिहास की लम्बी गूंजलकों में घिरे और किसी मुल्क के वासी के मुकाबले कतई अलग ढंग से खुद को देखने के आदी होते हैं । उस देखने में आत्मालोचन बहुत कम होता है ।
Suryabala
जन्म : 25 अक्टूबर, 1943; वाराणसी। शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी। प्रमुख कृतियाँ : कौन देस को वासी : वेणु की डायरी, मेरे संधि-पत्र, सुबह के इन्तजार तक, अग्निपंखी, यामिनी कथा, दीक्षांत (उपन्यास); एक इन्द्रधनुष जुबेदा के नाम, दिशाहीन, थाली-भर चाँद, मुँडेर पर, गृहप्रवेश, साँझवाती, कात्यायनी संवाद, मानुष-गंध, गौरा गुनवंती (कहानी); अजगर करे न चाकरी, धृतराष्ट्र टाइम्स, देश सेवा के अखाड़े में, भगवान ने कहा था, यह व्यंग्य कौ पंथ (व्यंग्य); अलविदा अन्ना (विदेश संस्मरण); झगड़ा निपटारक दफ्तर (बाल हास्य उपन्यास)। कई रचनाएँ भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनूदित। टीवी धारावाहिकों के माध्यम से अनेक कहानियों, उपन्यासों तथा हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं का रूपान्तर प्रसारित। ‘सजायाफ्ता’ कहानी पर बनी टेली िफल्म को वर्ष 2007 का सर्वश्रेष्ठ टेली िफल्म पुरस्कार। सम्मान : प्रियदर्शिनी पुरस्कार, व्यंग्यश्री पुरस्कार, रत्नादेवी गोयनका वाग्देवी पुरस्कार, हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान, महाराष्ट्र साहित्य अकादेमी का राजस्तरीय सम्मान, महाराष्ट्र साहित्य अकादेमी का सर्वोच्च शिखर सम्मान, राष्ट्रीय शरद जोशी प्रतिष्ठा पुरस्कार, भारतीय प्रसार परिषद का भारती गौरव सम्मान आदि से सम्मानित।
Suryabala
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