Bhartiya Samantwad

Author:

Ramsharan Sharma

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2019
ISBN-13

9788171782826

ISBN-10 9788171782826
Binding

Hardcover

Number of Pages 274 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 274
भारतीय इतिहास में सामंती ढाँचे के स्वरुप को लेकर इतिहासकारों के बीच आज भी मतभेद बरक़रार हैं, अब भी पत्र-पत्रिकाओं में इस विषय पर बहस चलती रहती है । प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. रामशरण शर्मा ने पहली बार भारतीय सामंतवाद के सम्पूर्ण पक्षों को लेकर उन पर सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत किया था । तब से लेकर आज तक न केवल इस पुस्तक के अंग्रेजी में एक से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं, बल्कि भारतीय सामंतवाद के सर्वांगीण अध्ययन के लिए दूसरी कोई पुस्तक आज तक सामने नहीं आई है । प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. शर्मा ने भारतीय सामंतवाद के जन्म से लेकर उसके प्रौढ़ होने तक प्रायः नौ सौ वर्षो के इतिहास का विवेचन किया है, जिसके दायरे में उन्होंने अनेक समस्याएँ उठाई हैं और कालांतर से उनके विषद विवेचन का मार्ग प्रशस्त किया है । क्षेत्र की दृष्टि से उनका यह अध्ययन मुख्यतः उत्तर भारत तक सीमित है और इसमें उन्होंने सामंतवाद के राजनितिक तथा आर्थिक पहलुओं पर ही विशेष रूप से विचार किया है । सामंतवादी व्यवस्था में किसानों और किराए के मजदूरों की दुर्दशा का सविस्तार विवेचन करते हुए प्रो. शर्मा ने दिखाया है कि कैसे श्रीमंत वर्ग अपने उच्चतर अधिकारों के द्वारा उपज का सारा अतिरिक्त हिस्सा हड़प लेता था और किसानों के पास उतना ही छोड़ता था जितना खा-पीकर वे उस वर्ग के लाभ के लिए आगे भी मेहनत-मशक्कत करते रह सकें । भारतीय इतिहास, भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक न सिर्फ उपयोगी है बल्कि अपरिहार्य भी है । इसमें प्रस्तुत की गई मूल स्थापनाएं आज भी अकाट्य हैं ।

Ramsharan Sharma

यह पुस्तक आर्य एवं हड़प्पा सभ्यता का एक गहन अध्ययन है। इसमें प्रो. शर्मा ने आर्यों के मूल स्थान की खोज की कोशिश के साथ-साथ ज्यादा जोर इन सभ्यताओं के सांस्कृतिक पहलू पर दिया है। लेखक ने अपने अध्ययन के दौरान इस पुस्तक में आर्य एवं हड़प्पा संस्कृतियों की भिन्नता को दर्शाया है। लेखक का मानना है कि हड़प्पा सभ्यता नगरी है लेकिन वैदिक सभ्यता में नगर का कोई चिह्न नहीं है। कांस्य युग का हड़प्पा सभ्यता में प्रमाण मिलता है। हड़प्पा में लेखन-कला प्रचलित थी लेकिन वैदिक युग में लेखन-कला का कोई प्रमाण नहीं है। अपनी सूक्ष्म विश्लेषण-दृष्टि और अकाट्य तर्कशक्ति के कारण यह कृति भी लेखक की पूर्व-प्रकाशित अन्य कृतियों की तरह पठनीय और संग्रहणीय होगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
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