नारी सनातन काल से पुरुष की लालसा का केंद्र है। जीवन के संघर्षों में फँसकर अभागी नारी को संसार के प्रत्येक छल-कपट का सहारा लेना पड़ता है। किंतु आधुनिक जीवन-संघर्षों की विषमता में ममता का संबल जीवन-नौका के लिए महान् आशा है। भगवती बाबू का यह उपन्यास आकार में छोटा होकर भी अपनी प्रभावशीलता में व्यापक है, जिसकी गूँज देर तक अपने भीतर और बाहर महसूस की जा सकती है। "लेकिन शायद हम झूठ से अलग रह ही नहीं सकते। हमारा सामाजिक जीवन भी तो एक तरह का व्यापार है -- आर्थिक न भी सही, भावनात्मक व्यापार, यद्यपि यह अर्थ हमारे अस्तित्व से ऐसे बुरी तरह चिपक गया है कि हम इससे भावना को मुक्त रख ही नहीं पाते। इस व्यापार में माल नहीं बेचा जाता या ख़रीदा जाता, बल्कि भावना का क्रय-विक्रय होता है। हमारा समस्त जीवन ही लेन-देन का है, और इसलिए झूठ की इस परंपरा को तोड़ सकने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है। सामाजिक शिष्टाचार निभाने के लिए मैं निकल पड़ा। और कोई काम भी तो नहीं था मेरे पास।"
Late Bhagwati Charan Verma
जन्म: 30 अगस्त, 1903; उन्नाव जिले (उ.प्र.) का शफीपुर गाँव। शिक्षा: इलाहाबाद से बी.ए., एल.एल.बी.। प्रारम्भ में कविता-लेखन। फिर उपन्यासकार के नाते विख्यात। 1933 के करीब प्रतापगढ़ के राजा साहब भदरी के साथ रहे। 1936 के लगभग फिल्म कार्पोरेशन, कलकत्ता में कार्य। कुछ दिनों विचार नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-सम्पादन। इसके बाद बम्बई में फिल्म-कथालेखन तथा दैनिक नवजीवन का सम्पादन। फिर आकाशवाणी के कई केन्द्रों में कार्य। बाद में, 1957 से मृत्यु-पर्यन्त स्वतंत्र साहित्यकार के रूप में लेखन। चित्रलेखा उपन्यास पर दो बार फिल्म-निर्माण और भूले-बिसरे चित्र ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित। पद्मभूषण तथा राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त। प्रकाशित पुस्तकें: अपने खिलौने, पतन, तीन वर्ष, चित्रलेखा, भूले-बिसरे चित्र, टेढ़े-मेढ़े रास्ते, सीधी सच्ची बातें, सामर्थ्य और सीमा, रेखा, वह फिर नहीं आई, सबहिं नचावत राम गोसाईं, प्रश्न और मरीचिका, चाणक्य, थके पाँव, युवराज चूण्डा, धुप्पल (उपन्यास); प्रतिनिधि कहानियाँ, मेरी कहानियाँ, मोर्चाबन्दी तथा सम्पूर्ण कहानियाँ (कहानी-संग्रह); मेरी कविताएँ, सविनय और एक नाराज कविता (कविता-संग्रह);मेरे नाटक, वसीयत (नाटक); अतीत के गर्त में, कहि न जाय का कहिए (संस्मरण);साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप (साहित्यालोचन);भगवतीचरण वर्मा रचनावली–14 खंड (सम्पूर्ण रचनाएँ)। निधन: 5 अक्टूबर, 1981.
Late Bhagwati Charan Verma
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