Yalgar

Author:

Sharankumar Limbale

,

Translated by Padmaja Ghorpade

Publisher:

VANI PRAKSHAN

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Publisher

VANI PRAKSHAN

Publication Year 2020
ISBN-13

9789389563733

ISBN-10 9789389563733
Binding

Hardcover

Number of Pages 136 Pages
Language (Hindi)
यह कविता बॉम्बस्फोट का सच हैं! खूनी है यह कविता! खेतों की इन मेंड़ों को कारावास की इन दीवारों को शीशमहल की इन खिड़कियों को पता नहीं है मेरे शब्दों में का सन्तप्त सौन्दर्य ? ये तूफ़ान मेरे घमण्डी प्रश्वास से उठते हैं मेरे हुंकार से प्रलय प्रसारित होती है शोषितों के कण्ठ-कण्ठ में! मेरी सख्त कलाई से इस देश का नया चेहरा उभर रहा है मेरे शब्द-शब्द में सजा है नया इतिहास इन शब्दों में दबोचा हुआ एक दुख है इन अक्षरों में एक खण्डित सुख है। शब्दों पर फैल रहा है अर्थ कोड़ों-सा अक्षरों में से शब्द फैल रहे हैं। लैस की गयी बन्दूक़-से मेरे आसपास का धधकता असन्तोष मुझे ही प्रज्वलित कर रहा है क़लम में से कल के सन्दर्भ के लिए! मेरे पैरों तले जल रही रेत और आसमान आँसू टपका रहा है मैं भयभीत हूँ किसी अनाहूत डर से लेकिन सधी हुई लापरवाही से । बोल रहा हूँ कल के बारे में! कल मैं रहूँगा नहीं रहूँगा। लेकिन कल के अपने स्वागत हेतु अपने ये शब्द-फल अपने शिलालेख के रूप में छोड़े जा रहा हूँ।

Sharankumar Limbale

Translated by Padmaja Ghorpade

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