| Publisher |
LOKBHARTI PRAKASHAN |
| Publication Year |
2016 |
| ISBN-13 |
9788180315404 |
| ISBN-10 |
8180315401 |
| Binding |
Paperback |
| Number of Pages |
128 Pages |
| Language |
(Hindi) |
अपनी कहानियों के बारे में स्वयं लेखिका का कहना है : “प्रस्तुत कहानियों में से कुछ ऐसी हैं जो अपने आप मुझ तक चली आई हैं। ‘छुटकारा’ में कच्ची धान की गन्ध है, लेकिन भावुकता नहीं। सन् साठ के बाद के लेखकों की तरह मैंने भी भावुकता का बोझ उतार फेंककर ही कहानी की दुनिया में क़दम रखा...।”
जीवन के दैनिक उतार-चढ़ाव में हम जो देखते हैं, वह चेतना के एक कोने में जमा रहता है और अपनी कहानियाँ बनाता-बुनता रहता है। ममता कालिया का समर्थ कथाकार इसी बुनावट को अपनी भाषा में इतने सुग्राह्य और स्पष्ट रूप में उकेरता है कि कहानी एक गठी हुई टिप्पणी की तरह हमारे मन-मस्तिष्क में अंकित हो जाती है।
इस संग्रह में शामिल ‘बड़े दिन की पूर्व साँझ’, ‘वे तीन और वह’, ‘यह ज़रूरी नहीं’, ‘बीमारी’, ‘अपत्नी’, ‘छुटकारा’, ‘उसी शहर में’, ‘ज़िन्दगी : सात घंटे बाद की’, ‘पिछले दिनों का अँधेरा’, ‘साथ’—ये सभी कहानियाँ पठनीयता की उस अनिवार्य शर्त को भी पूरा करती हैं जो इधर अकसर संकट में दिखाई देती हैं।
Mamta Kaliya
ममता कालिया ममता कालिया का जन्म 2 नवम्बर, 1940 को बृन्दावन में हुआ । शिक्षा दिल्ली, मुम्बई, पुणे, नागपुर और इन्दौर में । कहानी, नाटक, उपन्यास, निबन्ध, कविता और पत्रकारिता अर्थात साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन । हिन्दी कहानी के परिदृश्य पर उनकी उपस्थिति सातवें दशक से निरन्तर बनी हुई है । वे महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका 'हिन्दी' की सम्पादक रही हैं ।
Mamta Kaliya
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