Gopal Bhand Ki Anokhi Duniya

Author :

Ashok Maheshwari

Publisher:

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

Rs521 Rs695 25% OFF

Availability: Available

Shipping-Time: Usually Ships 1-3 Days

    

Rating and Reviews

0.0 / 5

5
0%
0

4
0%
0

3
0%
0

2
0%
0

1
0%
0
Publisher

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

Publication Year 2023
ISBN-13

9788183615112

ISBN-10 8183615112
Binding

Hardcover

Number of Pages 148 Pages
Language (Hindi)
प्राचीन काल में बंगाल में एक राज्य था—कृष्णनगर। इस राज्य के लोग शान्ति-प्रिय थे। कला-संस्कृति के प्रति इस राज्य के लोगों का गहरा लगाव था। कृष्णनगर पर ऐसे तो अनेक शासकों ने राज्य किया किन्तु जो प्रसिद्धि राजा कृष्णचन्द्र राय ने पाई, उसकी अन्य किसी से तुलना नहीं की जा सकती। राजा कृष्णचन्द्र राय सहृदय प्रजापालक, हास-परिहास में रुचि लेनेवाले न्यायप्रिय शासक थे। उनके शासनकाल में कृष्णनगर की प्रजा हर तरह से सुखी थी क्योंकि राजा कृष्णचन्द्र राय प्रजा के दु:ख से दु:खी, प्रजा के सुख से सुखी होते थे। आमोदप्रिय होने के कारण महाराज कृष्णचन्द्र राय के दरबार में विभिन्न कलाओं के विद्वानों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था, उनके दरबार में गोपाल नाम का एक युवक ‘विदूषक’ के रूप में शामिल किया गया। गोपाल की तीव्र मेधाशक्ति, वाक्पटुता और परिस्थितिजन्य विवेक से कार्य करने की विशिष्ट क्षमता ने जल्दी ही उसे राजा कृष्णचन्द्र राय के दरबार का ख़ास अंग बना दिया। विचित्रतापूर्ण सवालों को हल करने में गोपाल की चतुराई काम आती थी। इस कारण अपने जीवनकाल में ही गोपाल किंवदन्‍ती बन गया था। आज भी बंगाल के गाँवों में लोगों को गोपाल भाँड़ की चुटीली कहानियाँ कहते-सुनते देखा जा सकता है। इन कहानियों में व्यंग्य है, हास्य है, रोचकता है, चतुराई है, न्याय है और है सबको गुदगुदा देनेवाली शक्ति।

Ashok Maheshwari

अशोक महेश्वरी 9 अक्टूबर, 1957 को उत्तर प्रदेश के हापुड़ में एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे अशोक महेश्वरी ने रूहेलखंड विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी साहित्य) की पढ़ाई पूरी की। वे 1974 में प्रकाशन की दुनिया में सक्रिय हुए। 1978 में 'वाणी प्रकाशन’ का कार्यभार सँभाला। इसे सफलता की राह में तेजी से आगे बढ़ाते हुए 1988 में हिन्दी के प्रमुख प्रकाशनों में एक 'राधाकृष्ण प्रकाशन’ का कार्यभार भी सँभाला। 1991 में 'वाणी प्रकाशन’ की जिम्मेदारी से अलग हो गए। 1994 में हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान 'राजकमल प्रकाशन’ के प्रबन्ध निदेशक बने। 'राजकमल’ और 'राधाकृष्ण प्रकाशन’ को प्रगति-पथ पर आगे बढ़ाते हुए 2005 में 'लोकभारती प्रकाशन’ का भी कार्यभार सँभाला। फिलहाल वे हिन्दी के तीन प्रमुख साहित्यिक प्रकाशनों के समूह 'राजकमल प्रकाशन समूह’ के अध्यक्ष हैं। इनकी कुछ बालोपयोगी पुस्तकें काफी चर्चित हैं।
No Review Found
More from Author