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Publisher | Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year | 2009 |
ISBN-13 | 9788180313882 |
ISBN-10 | 8180313883 |
Binding | Paperback |
Number of Pages | 226 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 25.5X20.3X2 |
Weight (grms) | 400 |
“लेखक को कला की महानता इसमें है कि उसने उपन्यास में यथार्थ से ही सन्तोष किया है। अर्थ और काम की प्रेरणाओं की विगर्हणा उसने स्पष्ट कर दी है। अर्थ की समस्या जिस प्रकार वर्ग और श्रेणी के स्वरूप को लेकर खड़ी हुई है, उसमें उपन्यासकार ने अपने पक्ष का कोई कल्पित उपलब्ध स्वरूप एक स्वर्ग, प्रस्तुत नहीं किया...अर्थ सिद्धान्त की किसी अयथार्थ स्थिति की कल्पना उसमें नहीं। समस्त उपन्यास का वातावरण बौद्धिक है। अत: आदि से अन्त तक यह यथार्थवादी है।...मनुष्यों की यथार्थ मनोवृत्ति का चित्रांकन करने की लेखक ने सजग चेष्टा की है।...यह उपन्यास लेखक के इस विश्वास को सिद्ध करता है कि परिस्थितियों से विवश होकर मनुष्य के रूप बदल जाते हैं। ‘मनुष्य के रूप' में मनुष्य की हीनता और महानता के यथार्थ चित्रण का एक विशद प्रयत्न किया गया है।”—डॉ० सत्येन्द्र
Yashpal
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd