प्रस्तुत पुस्तक में मुक्तिबोध को वर्तमान के आलोक में देखने परखने की एक कोशिश की गयी है। इसी क्रम में पुस्तक में मुक्तिबोध के लेखन के विविध पक्षों पर आलेख शामिल किये गये हैं। हर रचनाकार अपनी रचना में अपने समय और उसकी विडम्बनाओं को उकेरने की कोशिश करता है। इसका आशय यह भी होता है कि इन विडम्बनाओं को दूर किया जाना चाहिए। एक समय का सच आखिरकार ‘अतीत का वह सच’ बन जाता है जिसको वर्तमान ख़ारिज कर चुका होता है। काश रचनाकार की रचनाएँ भी ‘अतीत का सच’ बन पातीं। सही अर्थों में यह किसी भी रचनाकार का असल मन्तव्य भी होता है। मुक्तिबोध आजीवन संघर्ष के साक्षी रहे। इसीलिए संघर्ष उनकी रचनाओं का प्रत्यक्ष है। काश ‘सामूहिक मुक्ति’ का मुक्तिबोध का सपना साकार हो पाता। यह पुस्तक एक तरह से उन सपनों की पड़ताल है।
Gajanan Madhav Muktibodh
गजानन माधव मुक्तिबोध
जन्म : 13 नवम्बर, 1917 को श्योपुर, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)।
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), नागपुर विश्वविद्यालय।
विवाह : माता-पिता की असहमति से प्रेम-विवाह।
आजीविका : 20 वर्ष की उम्र से बडऩगर मिडिल स्कूल में मास्टरी आरम्भ करके दौलतगंज (उज्जैन), शुजालपुर, इन्दौर, कलकत्ता, बम्बई, बंगलौर, बनारस, जबलपुर, नागपुर में थोड़े-थोड़े अरसे रहे।
अन्ततः 1958 में दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांदगाँव में प्राध्यापक।
अभिरुचि : अध्ययन-अध्यापन, पत्रकारिता। साथ ही साहित्य, आकाशवाणी, राजनीति की नियमित-अनियमित व्यस्तता के बीच।
Gajanan Madhav Muktibodh
LOKBHARTI PRAKASHAN