Naye Subhashit

Author:

Ramdhari Singh Dinkar

Publisher:

LOKBHARTI PRAKASHAN

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Publisher

LOKBHARTI PRAKASHAN

Publication Year 1957
ISBN-13

9788180314124

ISBN-10 818031412X
Binding

Hardcover

Number of Pages 124 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20.5 X 13 X 1.5
सुभाषित संस्कृत काव्‍य-साहित्य की एक प्रचलित शैली है जिसमें रचित पदों में दृष्टि, सत्‍य, सौन्‍दर्य आदि का अद्भुत समन्‍वय देखने को मिलता है। कम शब्‍दों में बात कहने की कला इस शैली की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। राष्‍ट्रकवि दिनकर की इस पुस्‍तक में इसी शैली में रचे गए हिन्‍दी-पद शामिल हैं। सुभाषित हमेशा वाक्-कौशल लिये होते हैं। इनमें अन्‍तर्निहित सन्‍देश ऐसी चतुराई से पद्य-बद्ध किए जाते हैं कि इन्‍हें याद भी किया जा सकता है और अपने व्‍यावहारिक जीवन में उपयोग भी किया जा सकता है। इस पुस्‍तक के सुभाषित विभिन्‍न विषयों से सम्‍बन्धित हैं और इनका कैनवस बहुत बड़ा है। ये अनुभव और अध्‍ययन के साँचे में ढले हुए सुभाषित हैं। इसलिए इनमें जो एक अलग छन्‍दात्‍मक रंग देखने को मिलता है, उसके प्रभाव में ग़ज़ब का आकर्षण और माधुर्य है। व्‍यंग्‍य-विनोद का पुट तो ख़ास है ही। दिनकर ने अपने इन सुभाषितों में जिस काव्‍य-कौशल का परिचय दिया है, वह अपनी सम्‍प्रेषणीयता में एक मिसाल है। मिसाल इस मायने में भी कि आम पाठकों को ध्‍यान में रखकर भी ऐसे काव्‍य की रचना की जानी चाहिए। यही कारण है कि ये सुभाषित पढ़नेवाले को अपनी ही कहन का हिस्‍सा लगने लगते हैं और हृदयतल को छू वहीं ठहर जाते हैं। इस पुस्‍तक में ऐसे कई सुभाषित हैं जो आज के उथल-पुथल-भरे समय में साठ साल पहले लिखे जाने के बाद भी प्रासंगिक हैं। इसलिए यह पुस्‍तक सिर्फ़ पठनीय ही नहीं, एक ज़रूरी पुस्‍तक भी है।

Ramdhari Singh Dinkar

राष्ट्रकवि 'दिनकर' छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति। वे संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू के भी बड़े जानकार थे। वे 'पद्म विभूषण' की उपाधि सहित 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार', 'भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' आदि से सम्मानित किए गए थे।.
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