Paanch Din । पाँच दिन

Author:

Surendra Mohan Pathak

Publisher:

Hindi Yugam

Rs224 Rs299 25% OFF

Availability: Available

Shipping-Time: Usually Ships 1-3 Days

    

Rating and Reviews

0.0 / 5

5
0%
0

4
0%
0

3
0%
0

2
0%
0

1
0%
0
Publisher

Hindi Yugam

Publication Year 2023
ISBN-13

9789392820687

ISBN-10 9392820682
Binding

Paperback

Number of Pages 400 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 25 x 20.3 x 4.7
Weight (grms) 285

तीन हादसे! दो दावेदार!


मोरवाल एस्टेट में दो हफ़्ते में तीन जानलेवा हमलों की बुनियाद बनती है


और इत्तफ़ाक़ से तीनों बार हादसों का निशाना बच निकलता है।


लेकिन ये हैरानी की बात नहीं थी, हैरानी की बात थी


कि एस्टेट के दो बाशिंदे दावा कर रहे थे कि उन हादसों की


ओट में से उनकी, उनकी,


जान लेने की कोशिश की गई थी,


अब चौथी कोशिश कभी भी हो सकती थी


और इस बार शायद शिकार का साथ इत्तफ़ाक़ न देता।


फिर एक जना पीडी सुधीर कोहली की शरण में पहुँच गया।


पाँच दिन


फ़िलॉस्फ़र-डिटेक्टिव सुधीर कोहली का सबसे विकट केस।


आदि से अंत तक रोचक। एक ही बैठक में पठनीय।


टॉप मिस्ट्री राइटर


सुरेन्द्र मोहन पाठक


का नवीनतम उपन्यास।

Surendra Mohan Pathak

सुरेन्द्र मोहन पाठक का जन्म 19 फ़रवरी, 1940 को खेमकरण, अमृतसर, पंजाब में हुआ। विज्ञान में स्नातक की उपाधि लेने के बाद आप ‘इंडियन टेलीफ़ोन इंडस्ट्रीज़’ में नौकरी करने लगे। पढ़ने के शौक़ीन पाठक जी ने मात्र 20 वर्ष की उम्र में ही अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त उपन्यासकार इयान फ्लेमिंग रचित ‘जेम्स बांड’ सीरीज़ और जेम्स हेडली चेज़ (James Hadley Chase) के उपन्यासों का अनुवाद करना शुरू कर दिया था। सन् 1949 में आपकी पहली कहानी, ‘57 साल पुराना आदमी’, ‘मनोहर कहानियाँ’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई। आपका पहला उपन्यास ‘पुराने गुनाह नए गुनाहगार’ सन् 1963 में ‘नीलम जासूस’ नामक पत्रिका में छपा था। 1963 से 1969 तक आपके उपन्यास विभिन्न पत्रिकाओं में छपते रहे। सुरेन्द्र मोहन पाठक के सबसे प्रसिद्ध उपन्यास ‘असफल अभियान’ और ‘खाली वार’ थे। इनके प्रकाशन के बाद पाठक जी प्रसिद्धि के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच गए। इसके बाद अब तक पीछे मुड़कर नहीं देखा है। 1977 में छपे आपके उपन्यास ‘पैंसठ लाख की डकैती’ की अब तक ढाई लाख प्रतियाँ बिक चुकी हैं। जब इसका अनुवाद अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुआ, तब इसकी ख़बर ‘टाइम’ मैगज़ीन में भी प्रकाशित हुई। पाठक जी के अब तक 300 से अधिक उपन्यास छप चुके हैं और वे अपने शुरुआती जीवन की कथा ‘न बैरी न कोई बेगाना’ और लेखकीय जीवन के सबसे हलचल वाले दिनों की कथा ‘हम नहीं चंगे बुरा न कोय’ नाम से लिख चुके हैं।
No Review Found
More from Author