Pratinidhi Kahaniyan : Ajneya

Author :

Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2024
ISBN-13

9789360864699

ISBN-10 9360864692
Binding

Paperback

Number of Pages 120 Pages
Language (Hindi)
रचनाकर्म को अर्थवत्ता की खोज से जुड़ा मानने वाले अज्ञेय की कहानियाँ प्रचलित अर्थों में ‘यथार्थ’ से क़रीबी जताती भले ही मालूम न पड़ती हों लेकिन, उनके ही शब्दों में कहें तो, अर्थवत्ता की खोज की मानवीय जिजीविषा को वे सूक्ष्मता से उद्घाटित करती हैं। उनका यथार्थ-बोध बाहरी दृश्य-जगत के बजाय आन्तरिक सत्य पर अधिक आश्रित है, मानवीय जीवन-सन्दर्भ से परे कहानी के सन्दर्भ की स्वतंत्र सत्ता को वे स्वीकार नहीं करते। उनकी दृष्टि व्यक्ति-वैशिष्ट्य केन्द्रित है, वह सामाजिकता की विरोधी नहीं है। वस्तुतः जिस दौर में हिन्दी कहानी-लेखन में ‘यथार्थ’ से जुड़ाव और उसका चित्रण ही श्रेष्ठता की कसौटी समझा जा रहा था, उसी दौर में अज्ञेय ने अपनी कहानियों में यथार्थ को सामाजिकता की सतही सीमा तक सीमित न मानकर वैयक्तिक संवेदनाओं के आधार पर उसको रचने या परखने को प्राथमिकता दी। दुर्भाग्य से इसे सामाजिक चेतना के अभाव के रूप में देखा गया। यह उनकी रचनात्मकता का सही आकलन नहीं था। यह ऐसा अवरोध था जिसको हटाए बिना उनकी कहानियों के मर्म तक पहुँचना सम्भव नहीं हो सकता। आज के कथित उत्तर-आधुनिक बल्कि अधुनान्तिक समय में अज्ञेय की कहानियाँ मानवीय जीवन के ऐसे अनेक प्रासंगिक पहलुओं की तरफ ध्यान दिलाती हैं जिन्हें अतीत की रूढ़ बहसों से फैले धुन्ध में देखना कठिन था।

Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'

सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' जन्म : 7 मार्च, 1911 को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के कुशीनगर में। शिक्षा : प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा पिता की देख-रेख में घर पर ही। 1929 में बी.एस-सी. करने के बाद एम.ए. में अंग्रेजी विषय रखा; पर क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने के कारण पढ़ाई पूरी न हो सकी। 1930 से 1936 तक विभिन्न जेलों में कटे। 1936-37 में सैनिक और विशाल भारत नामक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में रहे; इसके बाद इलाहाबाद से प्रतीक नामक पत्रिका निकाली और ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी स्वीकार की। देश-विदेश की यात्राएँ कीं। दिल्ली लौटे और दिनमान साप्ताहिक, नवभारत टाइम्स, अंग्रेजी पत्र वाक् और एवरीमैंस जैसी प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। 1980 में वत्सलनिधि की स्थापना की। प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह : भग्नदूत, चिन्ता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इन्द्रधनु रौंदे हुये ये, अरी ओ करुणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स (अंग्रेजी में)। कहानी-संग्रह : विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल। उपन्यास : शेखर एक जीवनी—प्रथम भाग और द्वितीय भाग, नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी। यात्रा वृतान्त :अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली। निबंध-संग्रह : सबरंग, त्रिशंकु, आत्मनेपद, आधुनिक साहित्य, एक आधुनिक परिदृश्य, आलवाल। आलोचना : त्रिशंकु, आत्मनेपद, भवन्ती, अद्यतन। संस्मरण : स्मृति लेखा। डायरियाँ : भवन्ती, अन्तरा और शाश्वती। विचार गद्य : संवत्सर। नाटक : उत्तरप्रियदर्शी। सम्पादित ग्रन्थ : तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक (कविता-संग्रह) के साथ कई अन्य पुस्तकों का सम्पादन। सम्मान : 1964 में आँगन के पार द्वार पर उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ और 1979 में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार। निधन : 4 अप्रैल, 1987
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