Pret Aur Chhaya

Author :

Ilachandra Joshi

Publisher:

LOKBHARTI PRAKASHAN

Rs160 Rs200 20% OFF

Availability: Out of Stock

Shipping-Time: Usually Ships 1-3 Days

Out of Stock

    

Rating and Reviews

0.0 / 5

5
0%
0

4
0%
0

3
0%
0

2
0%
0

1
0%
0
Publisher

LOKBHARTI PRAKASHAN

Publication Year 2018
ISBN-13

9789386863447

ISBN-10 9386863448
Binding

Paperback

Number of Pages 292 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22 X 14 X 1.5
Weight (grms) 290
पारसनाथ बोला- "मैं जल्दी किसी डॉक्टर को बुला लाता हूँ । तुम यहीं बैठी रहना । घबराना नहीं, मैं अभी आता हूँ ।”-यह कहकर सामने खूँटी पर टंगे छाते को लेकर वह चला गया । मंजरी हताश भाव से फर्श पर घुटने टेककर दोनों हाथों के सहारे खटिया के डण्डे पर सिर रखकर निश्चेष्ट अवस्था में आँखें बन्द करके बैठ गयी । बाहर झमाझम पानी बरस रहा था और भीतर संध्या के प्रायान्थकार में कराल मृत्यु की मौन छाया घिरी हुई थी । मंजरी को ऐसा मालूम हो रहा था, जैसे यह प्रेतों और छायाओ के किसी घोर दु:स्वप्न-लोक में किसी दुर्गम पहाडी पथ पर एकाकी चली जा रही हैँ-किसी अज्ञात रहस्यमय अनिर्दिष्ट स्थान में बसेरा दूँढ़ने के लिए; जैसे समय बहुत कम है और चलने में शीघ्रता न करने से अनन्त अन्धकारमयी कालरात्रि उसे चारों ओर से घेरकर अपने विकराल जबडों से ग्रस लेगी । वह हाँफती हुई, ठोकरें खाती हुई केवल चली जा रही हैँ-कहाँ से चली हैं, किस दिशा की ओर भागी जा रही है, कहाँ पहुंचने पर उसे विश्राम मिलेगा, इसका कुछ भी भान उसे नहीं है । बहुत देर तक उसी दु:स्वप्न की अवस्था में यह औंधे मुँह बैठी रही | --इसी पुस्तक से

Ilachandra Joshi

जन्म : 13 दिसम्बर, 1902; अल्मोड़ा के एक प्रतिष्ठित मध्यवर्गीय परिवार में। सन् 1921 में शरद बाबू से इनकी भेंट हुई। 'चाँद' के सहयोगी सम्पादक रहे और सन् 1929 में ‘सुधा’ का सम्पादन किया। ‘कोलकाता समाचार’, ‘चाँद', ‘विश्वचाणी', ‘सुधा’, ‘सम्मेलन-पत्रिका’, ‘संगम', ‘धर्मयुद्ध' और ‘साहित्यकार' जैसी पत्रिकाओं के सम्पादन से भी जुड़े रहे। पहला उपन्यास जो 1927 में लिखा गया था, सन् 1929 में प्रकाशित हुआ। प्रमुख कृतियाँ : उपन्यास—‘लज्जा’, ‘संन्यासी’, ‘पर्दे की रानी’, ‘प्रेत और छाया’, ‘निर्वासित’, ‘मुक्तिपथ’, ‘सुबह के भूले’, ‘जिप्सी’, ‘जहाज़ का पंछी’, ‘भूत का भविष्य’, ‘ऋतुचक्र’; कहानी—‘धूपरेखा’, ‘दीवाली और होली’, ‘रोमांटिक छाया’, ‘आहुति’, ‘खँडहर की आत्माएँ’, ‘डायरी के नीरस पृष्ठ’, ‘कँटीले फूल लजीले काँटे’; समालोचना तथा निबन्ध—‘साहित्य सर्जना’, ‘विवेचना’, ‘विश्लेषण’, ‘साहित्य चिंतन’, ‘शरतचन्द्र-व्यक्ति और कलाकार’, ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’, ‘देखा-परखा’। सम्मान : उत्तर प्रदेश शासन द्वारा ‘ऋतुचक्र' उपन्यास पर ‘प्रेमचन्द पुरस्कार’, ‘विशिष्ट पुरस्कार’ सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित। सन् 1979 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि। विशिष्ट पुरस्कार उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 1976-77, साहित्य वाचस्पति की उपाधि 1979 ईं.। निधन : सन् 1982
No Review Found
More from Author