Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2017 |
ISBN-13 |
9788126700813 |
ISBN-10 |
9788126700813 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
159 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
281 |
श्री हजारीप्रसाद भक्ति-तत्त्व, प्रेम-तत्त्व, राधाकृष्ण-मतवाद आदि के सबंध में जो भी उल्लेख-योग्य, जहाँ कहीं से पा सके हैं, उसे उन्होंने इस ग्रथ में संग्रह किया है और उस पर भाली-भांति विचार किया है, विचार का फलाफल उन्होंने स्पष्ट भाषा में ही लिखा है, इसका फल यह हुआ कि पुस्तक आराम के साथ, निश्चित, और आलास भाव से पढने लायक नहीं हुई है ! पद-पद पर चिंता और विचार करने की जरूरत है ! 'भारतीय धर्ममत के इतिवृत की आलोचना भी एक विपद है ! एक, सब कुछ को अति प्राचीन सिद्ध करने की प्रवृति और दूसरी, सब कुछ को अति अर्वाचीन सिद्ध करने की जिद! दोनों तरफ के इन दो पाषाण-संकटों के भीतर तरंग संकुल खर-स्रोत धरा में से भी द्विवेदीजी जो नैया खेकर घाट पर भिड़ा सके हैं, यह उनके लिए कम प्रशंसा की बात नहीं है !"
Hazari Prasad Dwivedi
बचपन का नाम: बैजनाथ द्विवेदी।
जन्म: श्रावणशुक्ल एकादशी सम्वत् 1964 (1907 ई.)। जन्म-स्थान: आरत दुबे का छपरा, ओझवलिया, बलिया (उत्तर प्रदेश)। शिक्षा: संस्कृत महाविद्यालय, काशी में। 1929 में संस्कृत साहित्य में शास्त्री और 1930 में ज्योतिष विषय लेकर शास्त्राचार्य की उपाधि।8 नवम्बर, 1930 को हिन्दी शिक्षक के रूप में शान्तिनिकेतन में कार्यारम्भ; वहीं 1930 से 1950 तक अध्यापन; सन् 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक और हिन्दी विभागाध्यक्ष; सन् 1960-67 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिन्दी प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष; 1967 के बाद पुनः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में; कुछ दिनों तक रैक्टर पद पर भी।
Hazari Prasad Dwivedi
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd