Aadim Ratri Ki Mehak (Hindi)

Author:

Phanishwarnath Renu

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2022
ISBN-13

9789394902114

ISBN-10 9394902112
Binding

Paperback

Edition 3rd
Number of Pages 143 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22.5X14.5X1.5
Weight (grms) 156

फणीश्वरनाथ रेणु के कथा साहित्य को आंचलिक कहा गया है किन्तु उनकी कहानियाँ (तथा उपन्यास भी) जहाँ एक ओर ग्राम्य-जीवन की आंचलिकता को ही नहीं उसकी सम्पूर्ण आन्तरिकता को व्यक्त करती हैं, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण तथा शहरी जीवन के अन्त:सम्बन्धों की वास्तविकता का भी उद्घाटन करती हैं। रेणु की कहानियों में अत्यन्त ‘निजी’ को व्यापक सामाजिक यथार्थ से जोड़ पाने की अद्भुत क्षमता है और ऐसा वे अपूर्व काव्यात्मक रचाव के साथ कर पाते हैं। इस प्रक्रिया में उनकी कहानियाँ संगीत की सरहदों को छूने लगती हैं। उनके सहज प्रतीत होनेवाले कथा-शिल्प से अनायास ‘ऑडियो-विजुअल’ प्रभाव उत्पन्न होने लगता है। उनकी टेकनीक एक सुरयलिस्टिक पैटर्न निर्मित करती है जिसमें एक ‘प्रिज़्म’ की तरह छनकर रंगारंग विचारों तथा भावनाओं की घुलनशीलता शामिल हो जाती है। उनकी कहानियाँ हमारी सम्पूर्ण संवेदनाओं को एक साथ तृप्त करती हैं। अगर उनमें गहरी लयबद्ध ऐन्द्रिकता है तो बिना बौद्धिकता का छद्म धारण किये ही ‘वस्तु सत्य’ के मर्म तक पहुँच जानेवाली विश्लेषणपरकता भी है। आजादी के बाद के राजनैतिक परिवर्तनों का दस्तावेजी बयान प्रस्तुत करनेवाली कहानियों में यह तथ्य खूब उभरकर आता है–‘जलवा’ तथा ‘आत्म-साक्षी’ जैसी कहानियों में तटस्थ राजनैतिक बोध की निर्ममता के साथ उस क्रूर ‘ट्रेजडी’ का एहसास भी है जिसमें कोमल मानवीय सच्चाइयों के निर्दयता से कुचले जाने का इतिहास अंकित है। ‘आदिम रात्रि की महक’ की कहानियों में एक नैसर्गिक विनोद वृत्ति है जो एक साथ भाषा, स्थितियों तथा चरित्रों से छेड़छाड़ करती चलती है–चुलबुलेपन की हद तक जाकर! लेकिन उनमें कब अचानक एक करुण मानवीय बोध उतर आता है, इसका पता पाठक को तब चलता है जब उसकी ‘हँसी’ में सहसा एक ‘हूक’ शामिल हो जाती है। ऐसे विरल संयोगों के हिन्दी में रेणु एकमात्र कथाकार हैं। –विजय मोहन सिंह

Phanishwarnath Renu

जन्म: 4 मार्च, 1921 । जन्म स्थान: औराही हिंगना नामक गाँव, जिला पूर्णिया (बिहार) । हिन्दी कथा-साहित्य में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रचनाकार । दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्ष राजनीति में सक्रिय हिस्सेदारी । 1942 के भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में एक प्रमुख सेनानी । 1950 में नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वहाँ की सशस्त्र क्रान्ति और राजनीति में सक्रिय योगदान। 1952-53 में दीर्घकालीन रोगग्रस्तता । इसके बाद राजनीति की अपेक्षा साहित्य-ज्ञान की ओर अधिकाधिक झुकाव। 1954 में बहुचर्चित उपन्यास मैला आँचल का प्रकाशन। कथा-साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज़ आदि विधाओं में भी लिखा। व्यक्ति और कृतिकार, दोनों ही रूपों में अप्रतिम। जीवन की सांध्य वेला में राजनीतिक आन्दोलन से पुनः गहरा जुड़ाव। जे.पी. के साथ पुलिस दमन के शिकार हुए और जेल गए। सत्ता के दमनचक्र के विरोध में पद्मश्री लौटा दी। कृतियाँ: मैला आँचल, परती परिकथा, दीर्घतपा, कितने चौराहे (उपन्यास); ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी में, अच्छे आदमी, सम्पूर्ण कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानी-संग्रह); ऋणजल धनजल, वन तुलसी की गन्ध, समय की शीला पर, श्रुत-अश्रुत पूर्व (संस्मरण) तथा नेपाली क्रान्ति-कथा (रिपोर्ताज); रेणु रचनावली (समग्र)। देहावसान: 11 अप्रैल, 1977.
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