Maila Aanchal

Author:

Phanishwarnath Renu

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2016
ISBN-13

9788126704804

ISBN-10 9788126704804
Binding

Paperback

Number of Pages 353 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 370
मैला आँचल हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं भी घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। मैला आँचल का कथानायक एक युवा डॉक्टर है जो अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद एक पिछड़े गाँव को अपने कार्य-क्षेत्र के रूप में चुनता है, तथा इसी क्र म में ग्रामीण जीवन के पिछड़ेपन, दु:ख-दैन्य, अभाव, अज्ञान, अन्धविश्वास के साथ-साथ तरह-तरह के सामाजिक शोषण-चक्र में फँसी हुई जनता की पीड़ाओं और संघर्षों से भी उसका साक्षात्कार होता है। कथा का अन्त इस आशामय संकेत के साथ होता है कि युगों से सोई हुई ग्राम-चेतना तेजी से जाग रही है। कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु की इस युगान्तरकारी औपन्यासिक कृति में कथाशिल्प के साथ-साथ भाषा और शैली का विलक्षण सामंजस्य है जो जितना सहज-स्वाभाविक है, उतना ही प्रभावकारी और मोहक भी। ग्रामीण अंचल की ध्वनियों और धूसर लैंडस्केप्स से सम्पन्न यह उपन्यास हिन्दी कथा-जगत में पिछले कई दशकों से एक क्लासिक रचना के रूप में स्थापित है।

Phanishwarnath Renu

जन्म: 4 मार्च, 1921 । जन्म स्थान: औराही हिंगना नामक गाँव, जिला पूर्णिया (बिहार) । हिन्दी कथा-साहित्य में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रचनाकार । दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्ष राजनीति में सक्रिय हिस्सेदारी । 1942 के भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में एक प्रमुख सेनानी । 1950 में नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए वहाँ की सशस्त्र क्रान्ति और राजनीति में सक्रिय योगदान। 1952-53 में दीर्घकालीन रोगग्रस्तता । इसके बाद राजनीति की अपेक्षा साहित्य-ज्ञान की ओर अधिकाधिक झुकाव। 1954 में बहुचर्चित उपन्यास मैला आँचल का प्रकाशन। कथा-साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्ताज़ आदि विधाओं में भी लिखा। व्यक्ति और कृतिकार, दोनों ही रूपों में अप्रतिम। जीवन की सांध्य वेला में राजनीतिक आन्दोलन से पुनः गहरा जुड़ाव। जे.पी. के साथ पुलिस दमन के शिकार हुए और जेल गए। सत्ता के दमनचक्र के विरोध में पद्मश्री लौटा दी। कृतियाँ: मैला आँचल, परती परिकथा, दीर्घतपा, कितने चौराहे (उपन्यास); ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी में, अच्छे आदमी, सम्पूर्ण कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानी-संग्रह); ऋणजल धनजल, वन तुलसी की गन्ध, समय की शीला पर, श्रुत-अश्रुत पूर्व (संस्मरण) तथा नेपाली क्रान्ति-कथा (रिपोर्ताज); रेणु रचनावली (समग्र)। देहावसान: 11 अप्रैल, 1977.
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