Mud Mudke Dekhta Hoon

Author:

Rajendra Yadav

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2019
ISBN-13

9788119159789

ISBN-10 8119159780
Binding

Paperback

Number of Pages 219 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22 X 14 X 2

मुड़-मुड़के देखता हूँ राजेन्द्र यादव का आत्मकथ्य है। इसमें उन्होंने अपने जीवन के ऐसे मोड़ों का ज़िक्र किया है जिनकी उनके लिए ख़ास अहमियत रही, और जो उनको लगे, कि किसी और के लिए भी रुचिकर होंगे। उनका मानना था कि आत्मकथा लिखना एक तरह से अपनी जीवन-यात्रा के लिए ‘जस्टीफ़िकेशन’ या वैधता की तलाश होती है, और उनमें ‘त‍थ्यों को काट-छाँटकर अनुकूल बनाने की कोशिशें छिपाए नहीं छिपतीं।’इसीलिए यह पुस्तक आत्मकथा की शैली में लिखी गई आत्मकथा नहीं, लेकिन उनके जीवन का पूरा ख़ाका इसमें ज़रूर स्पष्ट हो जाता है। साथ ही, इसमें वे मूल्य, मान्यताएँ और ख़ूबियाँ-कमज़ोरियाँ भी प्रकट हो जाती हैं, जिनका निर्वाह उन्होंने सदैव निडर होकर किया। यह उनका साहस ही है कि अपने अन्तर्विरोधों, अपनी कुंठाओं को भी उन्होंने छिपाया नहीं, और न ही अपने रिश्तों को। अलग-अलग शीर्षकों के तहत अलग-अलग समय लिखे आलेखों में फैले इस विस्तृत आत्मकथ्य में उन्होंने अपने लेखक और व्यक्ति को ऐसी निर्ममता से देखा है, जो उन्हीं के लिए संभव थी।पुस्तक में संकलित अर्चना वर्मा का ‘तोते की जान’ शीर्षक लम्बा लेख इस आत्म-वृत्त को भी पूरा करता है; और राजेन्द्र यादव को जानने की प्रक्रिया को भी जिनके बारे में साहित्य का हर पाठक जानना चाहता है।

Rajendra Yadav

जन्म: 28 अगस्त, 1929, आगरा। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), 1951, आगरा विश्वविद्यालय। प्रकाशित पुस्तकें: देवताओं की मूर्तियाँ, खेल-खिलौने, जहाँ लक्ष्मी कैद है, अभिमन्यु की आत्महत्या, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक, टूटना, ढोल और अपने पार, चौखटे तोड़ते त्रिकोण, वहाँ तक पहुँचने की दौड़, अनदेखे अनजाने पुल, हासिल और अन्य कहानियाँ, श्रेष्ठ कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानी-संग्रह); सारा आकाश, उखड़े हुए लोग, शह और मात, एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ), मंत्र-विद्ध और कुलटा (उपन्यास); आवाज तेरी है (कविता-संग्रह); कहानी: स्वरूप और संवेदना, प्रेमचन्द की विरासत, अठारह उपन्यास, काँटे की बात (बारह खंड), कहानी: अनुभव और अभिव्यक्ति, उपन्यास: स्वरूप और संवेदना (समीक्षा-निबन्ध-विमर्श); वे देवता नहीं हैं, एक दुनिया: समानान्तर, कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें, वक्त है एक ब्रेक का, औरत: उत्तरकथा, पितृसत्ता के नए रूप, पच्चीस बरस: पच्चीस कहानियाँ, मुबारक पहला कदम (सम्पादन); औरों के बहाने (व्यक्ति-चित्र); मुड़-मुडक़े देखता हूँ (आत्मकथा); राजेन्द्र यादव रचनावली (15 खंड)। प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ के अगस्त, 1986 से 27 अक्टूबर, 2013 तक सम्पादन। चेखव, तुर्गनेव, कामू आदि लेखकों की कई कालजयी कृतियों का अनुवाद। निधन: 28 अक्टूबर, 2013.
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