यह मेरी आत्मकथा नहीं है ! इन 'अंतर्दर्शनों' को मैं ज्यादा-से-ज्यादा 'आम्त्काथ्यांश' का नाम दे सकता हूँ ! आत्मकथा वे लिखते हैं जो स्मृति के सहारे गुजरे हुए को तरकीब दे सकते हैं ! लम्बे समय तक अतीत में बने रहना उन्हें अच्छा लगता है ! लिखने का वर्तमान क्षण, वहां तक आ पहुँचने की यात्रा ही नहीं होता, कहीं-न-कहीं उस यात्रा के लिए 'जस्टिफिकेशन' या वैधता की तलाश भी होती है-मानो कोई वकील केस तैयार कर रहा हो ! लाख न चाहने पर भी वहां तथ्यों को काट-छाँटकर अनुकूल बनाने की कोशिशें छिपाए नहीं छिपती: देख लीजिए, मैं आज जहाँ हूँ वहां किन-किन घाटियों से होकर आया हूँ ! अतीत मेरे लिए कभी भी पलायन, प्रस्थान की शरणस्थली नहीं रहा ! वे दिन कितने सुन्दर थे .काश, वही अतीत हमारा भविष्य भी होता-की आकांक्षा व्यक्ति को स्मृति-जीवी, निठल्ला और राष्ट्र को सांस्कृतिक राष्ट्रवादी बनाती है ! जाहिर है इन स्मृति-खण्डों में मैंने अतीत के उन्ही अंशों को चुना है जो मुझे गतिशील बनाए रहे हैं ! जो छूट गया है जो मुझे गतिशील बनाए रहे हैं ! जो छूट गया हेई वह शायद याद रखने लायक नहीं था; न मेरे, न औरों के . कभी-कभी कुछ पीढ़ियाँ अगलों के लिए खाद बनती हैं ! बीसवीं सदी के 'उत्पादन' हम सब 'खूबसूरत पैकिंग' में शायद वही खाद हैं ! यह हताशा नहीं, अपने 'सही उपयोग' का विश्वास है, भविष्य की फसल के लिए .बुद्ध के अनुसार ये वे नावें हैं जिनके सहारे मैंने जिन्दगी की कुछ नदियाँ पार की हैं और सिर पर लादे फिरने की बजाय उन्हें वहीँ छोड़ दिया है|
Rajendra Yadav
जन्म: 28 अगस्त, 1929, आगरा। शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी), 1951, आगरा विश्वविद्यालय। प्रकाशित पुस्तकें: देवताओं की मूर्तियाँ, खेल-खिलौने, जहाँ लक्ष्मी कैद है, अभिमन्यु की आत्महत्या, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक, टूटना, ढोल और अपने पार, चौखटे तोड़ते त्रिकोण, वहाँ तक पहुँचने की दौड़, अनदेखे अनजाने पुल, हासिल और अन्य कहानियाँ, श्रेष्ठ कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानी-संग्रह); सारा आकाश, उखड़े हुए लोग, शह और मात, एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ), मंत्र-विद्ध और कुलटा (उपन्यास); आवाज तेरी है (कविता-संग्रह); कहानी: स्वरूप और संवेदना, प्रेमचन्द की विरासत, अठारह उपन्यास, काँटे की बात (बारह खंड), कहानी: अनुभव और अभिव्यक्ति, उपन्यास: स्वरूप और संवेदना (समीक्षा-निबन्ध-विमर्श); वे देवता नहीं हैं, एक दुनिया: समानान्तर, कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें, वक्त है एक ब्रेक का, औरत: उत्तरकथा, पितृसत्ता के नए रूप, पच्चीस बरस: पच्चीस कहानियाँ, मुबारक पहला कदम (सम्पादन); औरों के बहाने (व्यक्ति-चित्र); मुड़-मुडक़े देखता हूँ (आत्मकथा); राजेन्द्र यादव रचनावली (15 खंड)। प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ के अगस्त, 1986 से 27 अक्टूबर, 2013 तक सम्पादन। चेखव, तुर्गनेव, कामू आदि लेखकों की कई कालजयी कृतियों का अनुवाद। निधन: 28 अक्टूबर, 2013.
Rajendra Yadav
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