Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2023 |
ISBN-13 |
9788126730551 |
ISBN-10 |
8126730552 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
196 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
22.5 X 14.5 X 2 |
प्रेमचन्द स्वाधीनता-संग्राम में साधारण भारतीय जनता की जीवंतता, प्रतिरोधी शक्ति और आकांक्षाओं-स्वप्नों के अमर गायक। उपन्यास और कहानी जैसी, हिन्द में प्रायः लड़खड़ाकर चलना सीखती, विधाओं को ‘स्वाधीनता’ के इस महास्वप्न से जोड़कर रचनात्मक ऊँचाइयों के चरम पर ले जानेवाले परिकल्पक। रचनाशीलता को जनता के ठोस नित-प्रति भौतिक जीवन और उसके अवचेतन में मौजूद उसकी साधारण और असाधारण इच्छाओं को संयुक्त कर एक पूर्ण जीवन का आख्यान बनानेवाले युगदर्शी कथाकार। ‘यथार्थ’ की ठोस पहचान और ‘यथास्थिति’ के पीछे कार्य कर रही कारक शक्तियों की प्रायः एक वैज्ञानिक की तरह पहचान करनेवाले भविष्यदर्शी विचारक और बुद्धिजीवी। सम्भवतः इन्हीं कारणों से आधुनिक रचनाकारों में इकलौते प्रेमचन्द ही हैं जिनमें हिन्दी के शीर्ष स्थानीय मार्क्सवादी आलोचक प्रो. नामवर सिंह की दिलचस्पी निरन्तर बनी रही। प्रेमचन्द पर विभिन्न अवसरों पर दिए गए व्याख्यान एवं उन पर लिखे गए आलेख इस पुस्तक में एक साथ प्रस्तुत हैं। यहाँ शामिल निबन्धों एवं व्याख्यानों में प्रेमचन्द के सभी पक्षों पर विस्तार से बातचीत की गई है। प्रेमचन्द की वैचारिकता, जीवन-विवेक और उनकी रचनाओं के सम्बन्ध में प्रगतिशील आलोचना का स्पष्ट नज़रिया यहाँ अभिव्यक्त हुआ है। विशिष्ट सामाजिक परिप्रेक्ष्य में प्रेमचन्द की कहानियों और उपन्यासों का विवेचन यहाँ है और भारतीय आख्यान परम्परा के सन्दर्भ में प्रेमचन्द के कथा-शिल्प की विशिष्टता और उसकी भारतीयता पर गम्भीर विचार भी। साम्प्रदायिकता, दलित प्रश्न जैसे विशिष्ट प्रसंगों के परिप्रेक्ष्य में प्रेमचन्द की रचनात्मकता और उनके विचारों का मूल्यांकन हो या स्वाधीनता-संग्राम के सन्दर्भ में उनकी ‘पोजीशन’ का विवेचन—इन निबन्धों में नामवर जी अपनी निर्भ्रान्त वैचारिकता, आलोचकीय प्रतिभा और लोक-संवेदी तर्क-प्रवणता और स्पष्ट जनपक्षधरता से प्रेमचन्द को उनकी सम्पूर्णता में उपस्थित करते हैं।
Namvar Singh
जन्म-तिथि: 28 जुलाई, 1926। जन्म-स्थान: बनारस जिले का जीयनपुर नामक गाँव। प्राथमिक शिक्षा बगल के गाँव आवाजापुर में। कमालपुर से मिडिल। बनारस के हीवेट क्षत्रिय स्कूल से मैट्रिक और उदयप्रताप कालेज से इंटरमीडिएट। 1941 में कविता से लेखक जीवन की शुरुआत। पहली कविता इसी साल 'क्षत्रियमित्र’ पत्रिका (बनारस) में प्रकाशित। 1949 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. और 1951 में वहीं से हिन्दी में एम.ए.। 1953 में उसी विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में अस्थायी पद पर नियुक्ति। 1956 में पी-एच.डी. ('पृथ्वीराज रासो की भाषा’)। 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार। चुनाव में असफलता के साथ विश्वविद्यालय से मुक्त। 1959-60 में सागर विश्वविद्यालय (म.प्र.) के हिन्दी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर। 1960 से 1965 तक बनारस में रहकर स्वतन्त्र लेखन। 1965 में 'जनयुग’ साप्ताहिक के सम्पादक के रूप में दिल्ली में। इस दौरान दो वर्षों तक राजकमल प्रकाशन (दिल्ली) के साहित्यिक सलाहकार। 1967 से 'आलोचना’ त्रैमासिक का सम्पादन। 1970 में जोधपुर विश्वविद्यालय (राजस्थान) के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष-पद पर प्रोफेसर के रूप में नियुक्त। 1971 में 'कविता के नए प्रतिमान’ पर साहित्य अकादेमी का पुरस्कार। 1974 में थोड़े समय के लिए क.मा.मुं. हिन्दी विद्यापीठ, आगरा के निदेशक। उ8सी वर्ष जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (दिल्ली) के भारतीय भाषा केन्द्र में हिन्दी के प्रोफेसर के रूप में योगदान। 1987 में वहीं से सेवा-मुक्त। अगले पाँच वर्षों के लिए वहीं पुनर्नियुक्ति। 1993 से 1996 तक राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के अध्यक्ष। फिलहाल महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलाधिपति तथा आलोचना त्रैमासिक के प्रधान सम्पादक।.
Namvar Singh
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