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Publisher | Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year | 2023 |
ISBN-13 | 9788119159420 |
ISBN-10 | 811915942X |
Binding | Paperback |
Edition | 1st |
Number of Pages | 136 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 22X14.5X1.5 |
Weight (grms) | 152 |
एक कवि के रूप में नामवर सिंह जिस परिवेश में विकसित हुए वह नितान्त किसानी उजास और सौन्दर्य से भरा हुआ था। वहाँ आसपास सहज सुलभ थी–ग्रामीण मनोवृत्ति और प्रकृति से घनिष्ठता। नामवर जी ने कवि के रूप में उसी प्रकृति से उजाला पाया और अपनी कविता से उसी उजाले को विकसित और अभिव्यक्त किया। उनकी जितनी भी कविताएँ हैं वे 1940 से 1950 के बीच में लिखी गई थीं। इसके बाद उनका रुझान आलोचना की ओर होता चला गया और कवि-मन कहीं पीछे छूट गया। जिस कालखंड में ये कविताएँ विकसित हुईं, हिन्दी में वह प्रयोगवाद का समय है। नामवर सिंह की कविताएँ इस प्रयोगवाद से किनारा करती हैं। ऐसा नहीं है कि उनकी कविताओं के विषय नवीन नहीं हैं, बल्कि उनके यहाँ मन की गाँठों के लिए कोई जगह दिखलाई नहीं देती। उनका स्वर उल्लास की ओर ही अधिक रहा। उनकी कविताओं में अपने समय की राजनीतिक गतिविधियों के प्रति भी एक गहरी अन्तर्दृष्टि दिखलाई पड़ती है। स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय तत्कालीन राजनीतिक कार्यकताओं के जीवन-संघर्ष को आधार बनाकर वे अपने जन के मन को ओज से भरने का कार्य भी करते हैं। ये कविताएँ पाठकों को छायावादी आभास लिये दिख ज़रूर सकती हैं, किन्तु उनमें आधुनिकता का पुट भी बराबर रहता है। राजनीतिक सजगता तो उन्हें छायावाद से अलग करती ही है। उनकी कविताएँ जीवन को बहुत नज़दीक से देखती हैं। जीवन का हास-परिहास उनके यहाँ जीवंतता के साथ आया है। उनकी अधिकतर कविताओं में ग्राम है और उसकी मनोहर प्रकृति। यह प्रकृति उन्हें ढाँढस भी बँधाती है और लड़ने की शक्ति भी देती है। इस पुस्तक में नामवर जी लिखित ‘अपने बारे में’ शीर्षक एक आलेख भी शामिल है जिसमें वे अपने कवि का परिचय अत्यंत रोचक ढंग से देते हैं।
Namvar Singh
,Vijay Prakash Singh
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd