Publisher |
RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD |
Publication Year |
2023 |
ISBN-13 |
9788195948468 |
ISBN-10 |
8195948464 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
160 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
22 X 14 X 1 |
‘घुमक्कड़-शास्त्र’ साहित्य मात्र की अद्वितीय उपलब्धि है।
यात्रा-वृत्तान्त दुनिया की तमाम भाषाओं में लिखे गए हैं और पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थानों, स्मारकों, तीर्थों, नगरों आदि की गाइड बुक्स भी। लेकिन घुमक्कड़ी के लिए ‘शास्त्र’ रचने की आवश्यकता महाघुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन को छोड़कर किसी और ने महसूस नहीं की।
इस पुस्तक में वे घुमक्कड़ी को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु मानते हैं और घुमक्कड़ को समाज का सबसे बड़ा हितकारी। वे निर्द्वन्द्व घोषणा करते हैं कि घुमक्कड़ों ने ही आज की दुनिया को बनाया है, और इस क्रम में बुद्ध, महावीर से दयानन्द तक और कोलम्बस, वास्को-द-गामा और डारविन तक का उल्लेख करते हैं। वे आगाह भी करते हैं कि घुमक्कड़ी का उद्देश्य संहार नहीं सृजन होना चाहिए।
लेकिन कोई घुमक्कड़ कैसे बन सकता है?—इस प्रश्न को सामने रखते हुए राहुल स्पष्ट करते हैं कि इस पुस्तक का उद्देश्य ‘घुमक्कड़ी का अंकुर’ पैदा करना नहीं, बल्कि जन्मजात अंकुरों की पुष्टि, परिवर्धन तथा मार्ग-प्रदर्शन करना है। और निश्चय ही यह पुस्तक घुमक्कड़ी के इच्छुक किसी भी व्यक्ति के लिए एक असाधारण मानसिक सम्बल साबित होती है। राहुल इस किताब में सिर्फ सिद्धान्त नहीं रचते, वे घुमक्कड़ी के लिए आवश्यक व्यावहारिक युक्तियाँ भी बतलाते हैं। वे स्त्रियों को भी घुमक्कड़ी करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह पुस्तक पहली बार 1948 में छपी थी। इस सन्दर्भ को ध्यान में रखें तो उनके द्वारा स्त्रियों को घुमक्कड़ी के लिए कहना तब स्पष्ट ही एक क्रान्तिकारी प्रस्ताव था।
घुमक्कड़ शास्त्र में उनके अपने जीवन का निचोड़ है। यह वस्तुत: एक आह्वान है, जिसमें व्यक्ति को निर्द्वन्द्व और निर्बन्ध होकर पृथ्वी का ओर-छोर मापने और समाज की उन्नति में योगदान करने की भावना मूर्त हुई है।
Rahul Sankrityayan
राहुल सांकृत्यायन,जन्म : 9 अप्रैल, 1893,मूर्धन्य और अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान राहुल सांकृत्यायन साधु थे, बौद्ध भिक्षु थे, यायावर थे, इतिहासकार और पुरातत्त्ववेत्ता थे, नाटककार और कथाकार थे और थे जुझारू स्वतंत्रता-सेनानी, किसान-नेता, जन-जन के प्रिय नेता। उनके अनन्य मित्र भदंत आनन्द कौसल्यायन के शब्दों में, ''उन्होंने जब जो कुछ सोचा, जब जो कुछ माना, वही लिखा, निर्भय होकर लिखा। चिन्तन के स्तर पर राहुल जी कभी भी न किसी साम्प्रदायिक विचार-सरणी से बँधे रहे और न संगठित-सरणी से। वह 'साधु न चले जमात' जाति के साधु पुरुष थे।राहुल जी ने धर्म, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान, समाज, राजनीति, इतिहास, पुरातत्त्व, भाषा-शास्त्र, संस्कृत ग्रन्थों की टीकाएँ, अनुवाद और इसके साथ-साथ रचनात्मक लेखन करके हिन्दी को इतना कुछ दिया कि हम सदियों तक उस पर गर्व कर सकते हैं। उन्होंने जीवनियाँ और संस्मरण भी लिखे और अपनी आत्मकथा भी। अनेक दुर्लभ पांडुलिपियों की खोज और संग्रहण के लिए व्यापक भ्रमण भी किया।निधन : अप्रैल, 1963
Rahul Sankrityayan
RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD