Meri Ladakh Yatr

Author:

Rahul Sankrityayan

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Rs179 Rs199 10% OFF

Availability: Available

Shipping-Time: Usually Ships 1-3 Days

    

Rating and Reviews

0.0 / 5

5
0%
0

4
0%
0

3
0%
0

2
0%
0

1
0%
0
Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2025
ISBN-13

9789348157317

ISBN-10 9348157310
Binding

Paperback

Number of Pages 144 Pages
Language (English)
Dimensions (Cms) 22 X 14 X 1.5
Weight (grms) 150

महापंडित राहुल सांकृत्यायन को हिन्दी यात्रा-साहित्य का पितामह कहा जाता है। यायावरी उनके लिए शौक नहीं धर्म जैसी अहमियत रखती थी। ज्ञान और प्राचीन ग्रंथों की खोज में वे दूर-दूर तक गए। ‘मेरी लद्दाख यात्रा’ में उनके कुछ यात्रा-वृत्तान्तों को संकलित किया गया है। उनके यात्रा-विवरणों की विशेषता यह है कि वे सिर्फ स्थानों का विवरण नहीं देते, बल्कि वहाँ की संस्कृति, समाज, परम्पराओं, धर्म, इतिहास और भौगोलिक विशेषताओं की विवेचना भी करते चलते हैं। इस पुस्तक में वे मेरठ, पंजाब, कश्मीर, लंका, तिब्बत, नेपाल आदि स्थानों की अपनी ज्ञान-यात्राओं का विवरण देते हुए अनेक दिलचस्प घटनाओं का वर्णन तो करते ही हैं, वहाँ के रहने वाले जनसाधारण के जीवन के सजीव शब्द-चित्र भी खींचते चलते है।

Rahul Sankrityayan

राहुल सांकृत्यायन,जन्म : 9 अप्रैल, 1893,मूर्धन्य और अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान राहुल सांकृत्यायन साधु थे, बौद्ध भिक्षु थे, यायावर थे, इतिहासकार और पुरातत्त्ववेत्ता थे, नाटककार और कथाकार थे और थे जुझारू स्वतंत्रता-सेनानी, किसान-नेता, जन-जन के प्रिय नेता। उनके अनन्य मित्र भदंत आनन्द कौसल्यायन के शब्दों में, ''उन्होंने जब जो कुछ सोचा, जब जो कुछ माना, वही लिखा, निर्भय होकर लिखा। चिन्तन के स्तर पर राहुल जी कभी भी न किसी साम्प्रदायिक विचार-सरणी से बँधे रहे और न संगठित-सरणी से। वह 'साधु न चले जमात' जाति के साधु पुरुष थे।राहुल जी ने धर्म, संस्कृति, दर्शन, विज्ञान, समाज, राजनीति, इतिहास, पुरातत्त्व, भाषा-शास्त्र, संस्कृत ग्रन्थों की टीकाएँ, अनुवाद और इसके साथ-साथ रचनात्मक लेखन करके हिन्दी को इतना कुछ दिया कि हम सदियों तक उस पर गर्व कर सकते हैं। उन्होंने जीवनियाँ और संस्मरण भी लिखे और अपनी आत्मकथा भी। अनेक दुर्लभ पांडुलिपियों की खोज और संग्रहण के लिए व्यापक भ्रमण भी किया।निधन : अप्रैल, 1963
No Review Found
More from Author