आशा प्रभात का यह उपन्यास एक औरत का खुद को पहचानने और अपनी खुदी को बरकरार रखने की अद्भुत संघर्ष-गाथा है। इसमें बाहरी और अंदरूनी स्तर पर घटनाएँ कुछ इस कदर शाइस्तगी से घटती हैं कि पाठक चौंकता है और ठहर कर सोचने पर विवश हो जाता है। इस उपन्यास में सदियों से प्रतीक्षारत इस सवाल का उत्तर तलाशने की एक पुरजोर कोशिश की गई है कि पति, पत्नी और वह के प्रेम त्रिकोण वाले सम्बन्धों में सबसे कमजोर स्थिति किसकी होती है। अपने स्वत्व की तलाश में जुटी स्त्रियों के भटकाव की परिणति से अवगत कराता यह उपन्यास स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की बारीकी से पड़ताल करता है। लेखिका ने औरत से व्यक्ति बन जाने की जद्दोजहद को बहुत ही सहज भाषा में अभिव्यक्त करने का उपक्रम किया है। कथा प्रवाह और पठनीयता की दृष्टि से भी यह एक उल्लेखनीय कृति है।
Asha Prabhat
जन्म: 21 जुलाई, 1958 शिक्षा: स्नातक । हिंदी में प्रकाशित कृतियाँ: दरीचे (काव्य-संग्रह); धुंध में उगा पेड़, जाने कितने मोड़, मैं जनक नंदिनी (उपन्यास); कैसा सच (कथा-संग्रह) । उर्दू में प्रकाशित कृतियाँ: धुंध में उगा पेड़, जाने कितने मोड़ (उपन्यास)। मरमूज (शेरी मजमूआ); वह दिन (अफसानवी मजमूआ)। लिप्यंतरण एवं संपादन: साहिर समग्र (साहिर लुधियानवी का रचना-संसार) । सम्मान: बिहार राष्ट्र भाषा परिषद् द्वारा 'साहित्य सेवा सम्मान', बिहार उर्दू अकादमी द्वारा 'सुहैल अजीमावादी अवार्ड' और 'खसूसरी अवार्ड', 'प्रेमचंद सम्मान', 'दिनकर सम्मान', 'उर्दू दोस्त सम्मान' आदि । संप्रति: स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता
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